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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

पटवारी का इतिहास

पटवारी तेरे कितने नाम
  •    संजीव खुदशाह
आज पटवारी भारत के जन मानस का एक महत्वपूर्ण अंग है। कोई भी गांव की कहानी पटवारी के जिक्र के बिना पूरी नही होती। लोक गीत लोक-कथाओं में इसकी मौजूदगी गहरे पैठ को दर्शाती है। पहले पटवारियों के पास दो कोड़ेदार, ग्राम कोतवाल और घोड़े हुआ करते थे।
भारत के ज्ञात इतिहास में सर्वप्रथम भूमि को नाप कर उसका हिसाब किताब रखने का कार्य

बादशाह शेर शाह सूरी ने 1537 मे किया था इसी ने ज़मीन मामले की देखरेख हेतु पटवारी पद की स्थापना की। इस हेतु बादशाह का मुख्य उद्देश्य भूमि पर लगान वसूली एवं बकाया का इसाब रखना था, जिसके लिए भूमि का हिसाब रखना जरूरी था। इसलिए पटवारी, शासन एवं निज़ी भूमि यों के कागज़ात का संधारण करता था साथ ही लगान वसूली करता था। शेर शाह सूरी के बाद मुग़लों ने भी इस भू प्रबंध को जारी रखा। अकबर के नवरत्नो में से एक टोडरमल खत्री ने इसे और सुढ़ड किया। इस समय देश के कौन से खेत में कौन सा फसल बोया गया है और किस भूमि का कितना लगान है इन सबका वर्षवार लेखा जोखा रखा जाता था। जिसे जिन्सवार कहते है। जब भारत में अंग्रेज़ों का शासन था तो उन्हे लाल किले से कई ट्रक कागज़ात मिले उसे डिस्पोज करते समय जांच में पाया गया कि करीब दो से तीन सौ साल तक के जिन्सवार भरे पड़ें थे। वे चकित थे और इन कागजातो को सहेज कर रखा। उल्लेखनीय है कि आज भी राजस्व विभाग द्वारा जिन्सवार उसी तरह बनाया जाता है। जिनके आधार पर फसल का पूर्वानुमान और राष्ट्रीय नीति तैयार होती है। यहां यह भी बताया जाना जरूरी प्रतीत होता है कि राजस्व विभाग में प्रयुक्त शब्दावली हूबहू उसी काल की प्रयोग कि जाती है जैसे- पटवारी, तहसीलदार, नाईब तहसीलदार, कानूनगो, वासील वाकी नवीस, जमादार, हल्का, खसरा, खतौनी, चिटठा, तितम्मा आदी।
पटवारी या उससे मिलती जुलती प्रणाली पूरे विश्व में अपनाई जाती है। किंतु पाकिस्तान, बांगलादेश, नेपाल सहित कुछ देशों में पटवारी शब्द आज भी प्रचलित है। वही भारत कुछ हिस्से में पटवारी को अन्य नामो से भी पुकारा जाता है। जैसे गुजरात महाराष्ट्र में कुलकर्णी अब तलाठी, तमिलनाडु में पटवारी अब कर्णम अधिकारी, पंजाब में पटवारी कोपिंड दी मांगांव की मा भी कहा जाता है,आंध्रप्रदेश में अब पटवारी को आर... यानी ग्रामीण प्रशासनिक अधिकारी कहा जाता है, वही राजस्थान में पहले पटवारियों को हाकिम साबहु कहा जाता था। उत्तर प्रदेश में पटवारियों की हड़ताल से खफा होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह ने यह पद ही समाप्त कर दिया। लेकिन बाद में उन्हे लेख पाल के नाम से पुनः बहाल करना पड़ा। उत्तराखण्ड में पटवारी को पुलिस के भी अधिकार प्राप्त है। उन्हे राजस्व पुलिस कहा जाता है। राज्य के 65 फीसदी हिस्से में अपराध नियंत्रण, राजस्व संबंधी कार्यो के साथ ही वन संपदा की हकदारी का काम पटवारी ही सभांल रहे है।
पटवारियों के बारे में कोई केन्द्रीय कृत आंकड़ा नही है। राजस्थान में 10,685 पटवारी है तो मध्यप्रदेश में 11,622 छत्तीसगढ़ में लगभग 3200 वही उत्तर प्रदेश में 27,333 है। छत्तीसगढ़ का भूमि अभिलेख इंटरनेट पर मौजूद है तथा पटवारियों को 10 वर्ष पहले कम्प्यूटर दिये गये थे। लेकिन नई हल्का बंदी होने के कारण पटवारियों की संख्या काफी बढी है, जिन्हे कम्प्युटर प्रदाय किया जाना है।
भूअभिलेख संहिता के अनुसार एक पटवारी को एक निश्चित खाते का एक हल्का दिया जाना चाहिए। ग्रामीण इलाके में नई हल्का बंदी होने के कारण स्थिति ठीक हो गई, लेकिन शहरी इलाके में हल्का बंदी नही होने के कारण स्थिति विकट है। यहां हजारों खाते में एक पटवारी नियुक्त है इस कारण कार्य का बोझ और त्रूटी की संभावनाएं बढ़ जाती है। छत्तीसगढ़ मे ये शहरी इलाके आज भी नई हल्का बंदी का इंतजार कर रहे है।
ये सुखद है 475 वर्ष पुराना पटवारी हमेशा अपने आपको नई तकनीक एवं व्यवस्था के अनुरूप अपडेट किया है। लेकिन भारत की भू प्रबंधन प्रणाली कई मायने में पीछे चल रही है। उसे विकसित देशों के अनुरूप बंदोबस्त को अधतन करना होगा।
Publish on Nov Bharat 23/02/2014