· संजीव खुदशाह
हिग्स बोसोन की आज दुनिया भर में चर्चा हो रही है, ये निश्चित तौर पर ब्रम्हांड को समझने की दिशा में एक बङी उपलब्धि है, पर इसे ईश्वर कण कहना सर्वथा अनुचित है।
हिग्स बोसोन क्या है?
अभी तक हिग्स बोसोन सिर्फ भोतिक शास्त्रियों के मस्तिष्क में ही बसता था, इस बात को लेकर लगभग एक पूरा सिध्दान्त तैयार था कि ब्रम्हांड कैसे काम करता है इसमें वे सभी सूक्ष्म अंश शामिल है जिनमें अणु, कण और वे सब बनता है जिसे हम देख सकते है।
वैज्ञानिक लंबे समय से स्विटजरलैड की सर्न प्रयोगशाला में हिग्स बोसोन की खोज में जुटे है, वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्हें एक सूक्ष्माणु मिला है, जो लंबे समय से दुश्प्राप्य हिग्स बोसन से मिलता-जुलता है, एक अभूतपूर्व खोज जो इस बात की व्याख्या कर सकती है, कणों में भार क्यों होता है, तदानुसार, ब्रह्माण्ड में तारों, ग्रहों और अन्य चीजों का अस्तित्व क्यों है।
बुधवार की सुबह, जिनेवा की यूरोपियन प्रयोगशाला सीईआरएन में सैकड़ों वैज्ञानिक एकत्र हुए, और उनसे कहीं ज्यादा लाइव वेबकास्ट पर ये सुनने के लिए एकजुट हुए कि कैसे विशाल हैड्रॉन कोलाइडर के ताज़ातरीन आंकड़े निर्णायक रूप से हिग्स सरीखे कणों की मौजूदगी को लेकर खुलासा करने वाले हैं।
बोसोन नाम के पीछे तथ्य है कि भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस तथा अलर्बट आईस्टीन ने खास तरह के कणों की विशेषता बताते हुए एक र्फामुला बनाया था। इसलिए इसका नाम बोस+ऑन (Bosons) रखा गया। यह नाम वैज्ञानिक पाल डायराक ने दिया।
फिलहार सर्न के वैज्ञानिक इसे हिग्स बोसोन का नाम देने से बच रहे है।
गाड पार्टिकल कहने पर सर्न के वैज्ञानिकों में नाराजगी
स्वयं हिग्स कण के सिध्दांत का प्रतिपादन करने वाले ब्रिटिश भौतिक वैज्ञानिक प्रोफेसर पीटर हिग्स इस बात पर दुखी है कि अज्ञानता वश धार्मिक लोग इसे "ईश्वर कण" कहकर प्रचारीत कर रहे है। प्रोफेसर पीटर हिग्स 1960 के दशक के उन सिद्धान्तकारों में थे, जिन्होंने इसकी मौजूदगी की भविष्यवाणी की थी। वे कहते है कि "मुझे विश्वास नहीं होता कि ये असाधारण खोज मेरे जीते जी हुई,"
हिन्दुवादी संगठन द्वारा लगातार यह प्रयास किया जा रहा है कि किसी प्रकार भारतीय समाज के लोग धर्म कि जकङन से न निकल सके ताकि उनका धंधा निर्बाध रूप से चलता रहे इसलिए भारत कि जनता को गुमराह करने के लिए ऐसे लोग और उनसे सबंधित मीडिया जानबूझकर इस अविष्कार को गाड पार्टिकल कह कर प्रचारित कर रहे है।
हिदुवादियों का कहना है कि 50 हजार करोङ रूपय बेकार बर्बाद कर दिये गये। यहॉ के .ऋषियों मुनियों ने पहले हि खोज निकाला था, कि कण कण में भगवान है। इस प्रकार का प्रचार अन्य धर्मावलंबी भ्री रहे है।
इसे मै यदि आम भाषा में कहावत कहूं तो कहूंगा "मेहनत करे मुर्गा, अंडा खाये फकीर" । अब भारतीय मीडिया को ये फकीराना चोला उतारना होगा। हम करते तो कुछ नही बस किसी के अविष्कार को हङपने के लिए तैयार हो जाते। ये सवर्ण मीडिया अन्ना के मुआमले में विशुध्द वैज्ञानिकवादी बन जाती लेकिन दूसरी ओर विज्ञान के मुआमले में विशुध्द सनातनी। मुझे पी7, सहारा समय जैसे चैनलो पर आश्चय हुआ कि किस प्रकार दिन रात कण-कण में भगवान कहकर भडकाउ प्रोग्राम पेश किये, जिसमें विज्ञान सम्मत चर्चा कम हिन्दूवाद को परोसने कि कोशिश ज्यादा कि गई।
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