संजीव खुदशाह
फिल्म का नाम --
मद्रास कैफ़ेअवधि--130 मिनट
निर्देशक--सुजित सरकार
बैनर--Viacom 18 Motion Pictures
राजीव गांधी की हत्या और तमिल समस्या पर केन्द्रित यह
फिल्म एक ऐसे रॉ अधिकारी की कहानी है जो भारत के द्वारा श्रीलंका में भेजी गई
शांति सेना को लीड करने के लिए जाता है। मुख्य किरदार रॉ अधिकारी के रूप में जान
इब्राहीम ने राजीव गांधी की हत्या
के कई नये पहलू को उजागर करते है मसलन पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की हत्या
की साज़िश की जानकारी गुप्तचरों को पहले से होना। धनु और उनके साथियों द्वारा
हत्या का अभ्यास करना इत्यादी। लेकिन पूरे फिल्म में कही भी राजीव गांधी का नाम तक
नही लिया गया। न ही उनसे जुड़े किरदारो का हूबहू नाम रखा गया है। यदि निर्देशक को
केवल सेंसर बोर्ड में पास करवाने की गरज से ऐसा करना पडा हो तो यह भारतीय सेंसर
बोर्ड का एक घिनौना पहलू है। यह भारत में तानाशाही होने का एहसास कराता है।
क्योंकि यदि वास्तविक किरदारो एवं नामों से यह फिल्म बनती तो और अधिक
जीवंत और बेहतरीन फिल्म हो सकती थी। हालांकि यह फिल्म किसी सच्ची घटना से प्रेरित होने का दावा नही करती। किंतु इस फिल्म के पात्र
और घटनाएँ किसी सच्ची घटना के रूप में आगे बढ.ते है।
जैसे
राजीव गांधी द्वारा लिट्टे के दमन के लिए शांति के नाम पर सेना भेजना। उनके उपर
श्रीलंका में गार्ड आफ आनर के दौरान हमला होना।
यहां यह बताना जरूरी है, कि 1815 में ब्रिटेन ने श्रीलंका में
अपना कब्जा जमा लिया, इस समय इसे सीलोन के नाम से जाना जाता था। इसी समय चाय काफी और
नारियल उगाने के लिए दक्षिण भारत से काफी संख्या में तमिल श्रमिको को लाया गया। सिहली
यहां के मूल निवासी और बहुसंख्यक है, ये बौध्द धर्म को मानते है। 1948 को सीलोन आजाद
हुआ और राष्ट्रपति भंडारनायके ने सिंहला राष्ट्रवाद तथा बौध्द भावनाएं प्रोत्साहित
करने के लिए कदम उठाये। यहां के तमिलों के नराज होने के प्रमुख दो कारण है।
1. तमिलो का अधिकार बगानो से छीन लिया गया।
2. 1972 में बौद्द धर्म को देश का प्रमुख धर्म बनाया गया।
इसी कारण तमिल अलगावा वादी संगठन लिटटे प्रकाश में आया। और श्रीलंका
में गृह युध्द की स्थिति बन गई। हलांकि इन सब बातों को फिल्म में नही लिया गया।
इस
फिल्म में तमिलों की समस्या को सतही तौर पर उठाया गया है कि लिट्टे, श्रीलंका सरकार और भारत सरकार के बीच आम तमिल नागरिक किस प्रकार से जूझता
है। तमिल भाषी एक जागरूक कौम मानी जाती है। उनका अपना द्रवडीयन इतिहास है। उनका साहित्य
उत्तर भारत के किसी भी भाषा के साहित्य की तुलना में प्राचीन और समृद्ध है। लेकिन श्रीलंका की राजनैतिक
परिस्थिति उनका जीना मुहाल कर रही थी। दूसरी ओर भारत में तमिल शरणार्थियों कि
बढ.ती संख्या। ऐसी स्थिति में राजीव का शांति सेना भेजना, लिट्टे को उनका जानी दुश्मन बना दिया। श्रीलंकाई तमिल इसे श्रीलंका द्वारा
तमिलों का दमन में राजीव का सहयोग करार देते है। यहां भारत विश्व का दरोगा बनने की कोशिश करता दिखाई
पडता है।
यह
दुश्मनी तब खत्म होती है, जब
राजीव
गांधी चुनाव हार जाते है।
किंतु अगले लोक सभा चुनाव के दौरान तमिल समस्या को कांग्रेस के मुख्य ऐजेन्डे में
शामिल करने की राजीव की घोषणा। लिटटे को
उकसाने के लिए काफी थी। इस बात को बखूबी
दिखाया गया है कि किस प्रकार लंदन स्थित मद्रास कैफे नाम के रेस्त्रा में राजीव गांधी कि हत्या की साजिश रची गई। इसी रेस्त्रां में लिट्टे द्वारा
विदेशियों से धन तथा हथियांरो का सौदा किया जाता है। यहां यह बात छन कर सामने आती
है कि किस प्रकार ताकतवर देश आपने हथियार बेचने के लिए विश्व में युद्ध को जारी
रखना चाहते है। नक्सलियों के पास विदेशी हथियार होना इसी बात का सबूत है।
रॉ
एवं अन्य खुफ़िया एजेंसियों ने प्रभाकरन और
साथियों के बीच हुई कोड बातचीत को रिकार्ड कर लिया था। जिसे डिकोड करने की कोशिश की जाती है। अंतिम क्षण तक यह कोड डिकोड हो
जाता है। लेकिन उच्च अधिकारियों के द्वारा इस मामले में बरती गई उपेक्षा के परिणाम स्वरूप राजीव गांधी की मौत से हो जाती है।
यह
एक बेहतरीन फिल्म बन पडी है। इसे मै राजनीतिक एवं ऐतीहासिक फिल्म की केटेगरी में रखूगां।
कई ऐसे अनछूऐ पहलूओ से दर्शकों को रोचक ढंग से रूबरू कराती है जैसे लिट्टे का ठिकाना एवं राजीव गांधी की सभा
का दृश्य फिल्मांकन जीवंत प्रतीत होता है।
Published in November 2013 Issue- Forward Press