संजीव खुदशाह
आज कोर्ट द्वारा महत्वपूर्ण दो मुआमलों में दिये गये आदेशों को पढ.ने का मौका मिला। जिसमें से एक काटूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर तथा दूसरा निर्मल बाबा पर है।
बंबई उच्च न्यायलय ने काटूनिस्ट श्री त्रिवेदी को "तुच्छ'' आधार पर ''बिना सोचे समझे'' गिरफतार करने के लिए मुम्बई पुलिस को फटकार लगाई है कोर्ट ने कहा कि पुलिस की कार्यवाही से असीम की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ है।
पुलिस को यह भी बताना होगा कि काटूनिस्ट के खिलाफ राजद्रोह का आरोप कैसे लगाया गया। न्यायधीश डी वाई चंद्रचूण और अहमद सैयद की पीठ ने त्रिवेदी की गिरफतारी को प्रथम द़ष्टया 'मनमने तरीके से की गई' कार्यवाही बताते हुए कहा, हमारे पास असीम त्रिवेदी है जो अपने आवाज बुलंद करने का साहस रखता है और इसके खिलाफ खङा होता है, लेकिन उन कई लोगो की क्या स्थिति है जिनकी आवाज पुलिस बंद कर देती है आज आपने एक कार्टूनिस्ट पर हमला किया, कल फिल्म निर्माता पर हमला करेगे फिर लेखक पर.......। हम एक स्वतंत्र समाज में रहते है और हर व्यक्ति को बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है (पत्रिका दिनांक 15 sep 2012)
गौरतलब है कि मुंबई में हुए अन्ना के आदोलन के दौरान कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने एक कार्टून बनाया था। इस कार्टून में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह में मौजूद तीन सिंहों की जगह भेड़िए का सिर और 'सत्यमेव जयते' की जगह 'भ्रष्टमेव जयते' लिखा गया। पुलिस ने असीम के खिलाफ राजद्रोह के अलावा आईटी एक्ट, राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न एक्ट और साइबर क्राइम एक्ट के तहत भी केस दर्ज किया है।
इस फैसले से निम्न बाते उभर कर आती है
(1) असीम के कार्टून को प्रकाशित किया जा सकता है। ये कार्टून देश द्रोही की श्रेणी में नही है।
(2) स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति तथा देश द्रोह का फैसला लेने में पुलिस नाकाम रही।
(3) स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति तथा देश द्रोह की धाराओं के बीच सीमा रेखा नष्ट हो गई।
(4) देश द्रोह के इसी तरह के एक मुआमले में तिरंगे पर कमेन्टस करने पर जानी लिवर को स हुई थी तथा सिर्फ घर में हथियार रखने पर संजय दत्त को अपराधी ठहराया गया था।
दूसरा आदेश चर्चित निर्मल बाबा पर है
''दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्वयंभू तांत्रिक निर्मल बाबा से कहा कि वह अपने अनुयायियों को बेतुका उपाय नही बताएं। इसके साथ ही अदालत ने एक हिन्दी मीडिया पोर्टल को उनके लिखाफ की गई अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने पर रोक लगा दी है। न्यायधीश कैलाश गंभीर ने 22 प्रष्ठो के आदेश में बाबा के खिलाफ तीखी टिप्पणी की।'(पत्रिका 15 Sep 2012)'
निर्मल सिंह नरूला ऊर्फ निर्मल बाबा का मुआमला चर्चित था एवं देश के बुघ्दिजीवियों को इस फैसले का इन्तजार था। साथ-साथ यह भी आशा कि जा रही थी, कि निर्मल के बहाने टीवी पर दिखाये जाने वाले सभी ठगों की शामत आयेगी एवं इन पर पाबंदी लगा दि जायेगी। लेकिन ऐसा नही हुआ। इस आदेश से निम्न बाते उभरती है-
निर्मल बाबा अपने अनुयायियों को बेतुका उपाय नही बताए। तुक वाले उपाय क्या होगे इसका खुलासा नह किया गया। हो सकता है आदालत की मंशा हो कि जिस तरह अन्य ठग शास्त्रीय आधार पर उपाय बता रहे है वैसा करे। यानि गुरूवार को किसी ब्राम्हण को उज्वल वस्त्र दान करने से धन प्राप्ति होगी, या शनिवार को किसी भंगी को रात का बासी जूठा भोजन देने से पुण्य प्राप्त होगा रूके काम बनेगे, या सुबह सुबह तेली का मूह न देखे अन्यथा विपत्ति आयेगी। आज प्रतिदिन करोङो का व्यापार इन ठगों द्वारा देश की भोली जनता को डराकर बहकार किया जा रहा है। और जनता अपने जेब कटवाने की शिकायत कहीं कर भी नही पाती क्योकि इन ठगों को उपर से आर्शिवाद जो प्राप्त है।
इन दोनो आदेशों में एक बात सामन रूप से परिलक्षित होती है वह है मनु के विधान का कङाई से पालन।
ब्रम्ह हत्या महा पाप है इससे बचो,
वैदिक शास्त्रीय उपायों पर सरकारी मुहर लगाओ।
देखे मनुस्म़्रति अध्याय 8 एवं 10