हर पृष्ठ की हर लाईन है खास शायरी ‘नुमू’ की
संजीव खुदशाह
अरब का काव्य बहुत लंबा सफर तय करके भारत तक पहुचा। उसे भारत की आम समझ के लायक बनने के लिए काफी जद्दोजहद करने पड़ी। पहले मुसलमान बादशाहों के दरबार में गजल एवं शायरी पढ़ी जाती थी। ज्यादातर कसीदे बादशाहों के शान में ही पढ़े जाते थे तो कुछ हुस्न और खुदा की इबादत में । चूंकि मुसलमान बादशाह अरब मूल के वासी थे। इसलिए इनकी कसीदे भी अरबी में ही होती थी। और सारा साहित्य बादशाह और उनके सिपहसलाहकारों के बीच संकुचित रहता था। पहले-पहल आम भाषा में लिखने का श्रेय रसखान और अमीर खुसरों को जाता है। यह भी गौर तलब है की तत्कालीन बादशाहों के साथ-साथ आम लोगो में भी ये कवि लोकप्रिय रहे है। क्योकि इनकी शायरी की पहुच जन-जन तक थी। कारण स्पष्ट था शायरी की भाषा आम भाषा के करीब थी। एक ऐसी भाषा का निर्माण हो रहा था जो अरबी को सरल करते हुए हिन्दी के मेल से बनी थी। यही भाषा आगे चल कर ‘उर्दू’ के नाम से मशहूर हुई।
पहल बार उर्दू शायरी लिखने का श्रेय अमीर खुसरों को जाता है। जो ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के चेले थे। लेकिन उर्दू शायरी को अपनी बलंदियों तक पहुचाया मिर्जा गालिब साहब ने। ये दोनो शायर सिर्फ दरबार के नगीने न थे बल्कि ये लोक शायर भी थे। गली मुहल्लों तक में इनकी शायरी और गजले पढ़ी सुनी जाने लगी थी।
हकीकत यह है कि जिसने भी आम समझ के लायक लिखा है वे अपने समय में बलंदियों तक पहुचे, ज़ामाना आज भी उन्हे याद करता है। मै जिस शासर का जिक्र करने जा रहा हूँ। वे शायर है जिन्होने आम जबान में अपनी शायरी और गजले लिखी है। इन्हे शायर ए शहर यादव ‘विकास’ कहा जाता है। ताम झाम की जिन्दगी से बेखबर दूरस्थ इलाके में रहने वाले इस शायर की पकड़ शायरी में कुछ ऐसी है कि शायरी नापसंद करने वाले पाठक को भी यदि नुमू पढ़ाया जाय तो वह पूरी किताब पढ़कर ही दम लेगा। ‘नुमू’ के हर पृष्ठ की हर लाईन पठनीय है। जिसमेंं आम जिन्दगी का दर्द छीपा है। वे लिखते है। पृष्ठ 17 में
बातों की तल्खियां, दिलों में फासला करे।
अल्लाह हरेक ज़बान में , हर्फ ए वफा करे।।
नफरत से कोई बात, बनाई न जायेगी।
उल्फत हरेक दर्दो ग़म में फायदा करे।।
कठिन मुद्दों को शायरी में आसानी से कहा जा सकता है इसका नमूना अगर देखाना हो तो ‘नुमू’ की शायरी में देखा जा सकता है। उन्होने कुछेक उर्दू लफ़्जों के मायने भी पृष्ठ के नीचे दिये है जिससे वे, जो उर्दू से बिल्कुल भी मुखातीब नही है, शायरी की गहराईयों को समझ सके। शायर ए शहर यादव ‘विकास’ जी इस किताब के शुरू में ‘मेरी बात शीर्षक’ में लिख्ते है ‘गजल शायरी की आबरू है। इसमें दिलकशी है तिलिस्म है। ग़ज़ल शायरी का रसीला अन्दाज है। मेरा दिल ग़ज़ल के इसी अन्दाज पर फिदा हो गया और इसी अन्दाज की मुराद ‘नुमू’ आपके सामने है। ‘नुमू’ मेरी जिन्दगी के सुनहरे वक्त की इबारत है। जो आँखो से देखा, ऐहसास किया, उसे ज़बान दिया’ इन लाईनों को पढ़ने पर शायर की सहजता का अंदाजा असानी से लगाया जा सकता है।
श्री राजेन्द्र गायकवाड़ एक जौहरी है और उन्होने गुमनाम होते काबील शायर को लोगों के सामने लया है। वे बधाई के पात्र है। हलांकि यादव विकास साहब की रचनाएं आकाशावाणी दूरदर्शन एवं पत्र पत्रिकाओं में आती रही है। लेकिन जो बात इसक किताब में है वह विलक्षण है। आशा करता हूँ इनकी ये शायरी का गुलदस्ता ‘नुमू’ शायरी के मुरीदों के साथ-साथ आमोंखास को भी पसंद आयेगी।