नये जमाने का अंधविश्वास है मिड ब्रेन एक्टिवेशन
संजीव खुदशाह
यह लेख नवभारत अवकाश अंक की कवर स्टोरी में दिनांक 26 जुलाई 2015 को प्रकाशित हो चुका है, लेख काफी चर्चित रहा है, आज भी इसकी प्रतिक्रिया, और बधाई संदेश आ रहे है। इसे पुन: संदर्भ के साथ्ा प्रकाशित किया जा सकता है।
यदि आप समझते है कि टोनही प्रथा, डायान प्रथा या भूत प्रेत की कथा ही अंधविश्वास है या आप सोचते होगे की
बिल्ली रास्ता काटने पर रूक जाना अंधविश्वास है बांकि विश्वास सही है। कभी आप
सोचते होंगे की आप नये जमाने के है, आप मार्डन कालोनी में
रहते है, उच्चकोटी के मार्डन स्कूल में अपने बच्चों को
पढने भेजते है, और आपको अंधविश्वास छू भी नही सकता तो
होशियार हो जाईये क्योकि अब अंधविश्वास नये नये लिबास में झूठे साईंस के बहाने
आपको अपनी गिरफ्त में ले रहा है। अब आपको अपने झॉंसे में लाने के लिए अंधविश्वास
भी नई तकनीक का ईस्तेमाल कर रहा है। आप कभी भी धोखा
खा सकते है और आज के दिनों में मिड ब्रेन एक्टिवेशन के नाम पर आप बूध्दू बनाये जा
सकते है और ठगे जा सकते है।
मिड ब्रेन एक्टिवेशन क्या है।
मिड ब्रेन एक्टिवेशन का कोचिंग चलाने वाले ये दावा करते है कि वे 5
से 15 साल के बच्चों का मिड ब्रेन एक्टिवेट कर सकते है। वे बच्चे को एक या दो
हफते की एक खास ट्रेनिंग से गुजारा जाता है। इस ट्रेनिंग की खास बात ये है इस
ट्रेनिंग में बच्चों के अभिभावक या माता पिता को रहने की अनुमति नही दी जाती है।
कोंच्रिग वाले ये दावा करते है कि एक्टिवेशन के बाद बच्चा आँखों में पट्टी बांध
कर पढ़ लिख सकता है और गणित हल कर सकता है, रंगों
को पहचान सकता है। वे दावा करते है की इसमें लगातार अभ्यास, जिसमें बच्चों को
ब्रेन-एक्सरसाइज, ब्रेन-जिम, मेडिटेशन और विशेष तौर पर कंपोज किए गए स्प्रिचुअल-म्यूजिक पर डांस कराया
जाता है। भारतीय योग और जापानी तकनीक के मिलेजुले अभ्यास से बच्चों की इंद्रियों
को अति संवेदनशील बना दिया जाता है। इस अभ्यास के बाद बच्चा अपने आसपास के संसार
को सभी इंद्रियों से महसूस कर पाता है।
ऐतिहासिक पहलू
मिड ब्रेन एक्टिवेशन की शुरूआत जापान से हुई ऐसा माना जाता है।
जापान के ही माकोटों सिचेडा (makoto
shichida) अपने
आपको इसका पिता माह बताते है। वहां मिड ब्रेन एक्टिवेशन भारत की तरह झूठ पर
आधारित नही है बल्कि आंख में पट्टी बांध कर नीचे की ओर नांक के पास मौजूद खंद से
देखने का अभ्यास कराया जाता है। इसे सिचेडा मेथेड कहा जाता है न की यह कहा जाता
है की बच्चे का छटी इंद्री सक्रिय हो गई। बल्कि इस बात पर जोर दिया जाता है की इस
प्रकार पढाई करने पर दिमाग केंन्द्रित होता है। ध्यान भटकता नही है। हलांकि जापान
में ये मेथेड पर विवाद होता रहा है। बहर हाल ये प्रकिया सिंगापुर मलेशिया से होती
हुई भारत आई। लेकिन विदेशों में कम से यह नही प्रचारित किया गया की छठी इंद्री को
सक्रिय किया जाता है । खास बात ये है की कुछ देशों में इस प्रकार के कोचिंग देने
की अनुमति नही दी गई।
भारत में क्या स्वरूप
जैसा की विदेशों में भारत के बारे मान्यता है कि यह देश सॉंप और मदारियों
का है, अंधविश्वास की भरमार है। इसके के अनुरूप कुछ चतुर लोगों
ने इस मेथड को भारत में इंट्रीडूयूज किया और नाम दिया छठी इंद्री को सक्रिय करने
का। इसके लिए बाक़ायदा मोटी रकम वसूली जाने लगी और ऐसे कोचिंग के आयोजकों को
करोड़ो का फायदा होने लगा। ऐसी कोचिंग के लिए उच्च वर्ग के बच्चों को टारगेट
किया गया। खास कर ऐसे परिवारों को जो संस्कार के नाम पर सब कुछ स्वीकार करने के
लिए तैयार हो। भारत में ऐसे परिवारों की कमी नही है। धीरे धीरे यह नेटवर्क बडे
शहरों से छोटे शहर और कस्बों तक पहुचने लगा। खबर है की ऐसी कोच्रिग के लिए 25 से
50 हजार तक की रकम एक बच्चे के माता पिता से वसूली जाती है। कोच्रिग का नाम दिया
जाता है मिड ब्रेन एक्टिीवेशन वर्कसाप या थर्ड आई ऐक्टीवेशन प्रोग्राम या कहा जाता
छठी इंद्री सक्रिय करके अपने बच्चे को जिनियस बनाईये।
सच्चाई क्या है
सच्चाई यह है की बच्चों के माता पिता से मिड ब्रेन एक्टिवेशन के
नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है उसके एवज में उन्हे झूठ बोलना सिखाया जाता है।
दरअसल बच्चों को एक ब्लाईंड फोल्ड (एक खास प्रकार की आंखों की पट्टी) उसमें नाक
के उभार के कारण आये खाली जगह से नीचे रख कर वस्तु को देखने की प्रैक्टीस कराई
जाती है। और बच्चों को यह बोलने के लिए कहा जाता है की वे लोगो को कहे की उनका
मिड ब्रेन एक्टीवेट हो गया है। बच्चे ऐसा करने के लिए मजबूर किये जा रहे है उन्हे
ब्लेक मेल किया जाता है । उनके उपर हुये भारी भरकम खर्च का वास्ता दिया जाता है।
माता पिता या आयोजकों के मार के डर से भी बच्चे ये भेद छिपा ये रहते है। कई बार
माता पिता ये भेज जानकर समाजिक शर्म के कारण भेद को छिपा ये रहते।
बच्चे ही टारगेट क्यों
ऐसे कोचिंग के आयोजकों का कहना है की वे बुद्धि का विकास 5 से 15
साल तक होता है इसलिए बच्चों को ही ये ट्रेनिंग दी जाती है। जबकि सच्चाई ये है
की वे बुद्धि का विकास जीवन के अंतिम समय तक होता है।
बच्चों को टारगेट करने का सबसे बडा कारण है कि वे अच्छी एक्टींग
कर सकते है और लोग उन पर शक नही कर
सकते। एक कारण यह भी है की उन्हे भावनात्मक रूप से आसानी से बह काया जा सकता है।
15 साल की उमर तक बच्चों के लिए दुनिया एकदम नई होती है वे समझते है दुनिया ऐसी
ही है सच झूठ में वे फ़ासला नही कर पाते। उनके उपर माता पिता का जिनीयस बनने का
दबाव इतना होता है की वे सच्चाई चाह कर भी नही बता पाते। मिड ब्रेन एकिटवेश्न के
विरूद्ध संघर्ष करने वालों का यही आब्जेक्शन है की वे बच्चों को झूठ बोलने की
ट्रेनिंग दे रहे है। अपनी पोल खुलने के डर से वे लोग बड़ों को ट्रेनिंग नही देते।
विज्ञान है साबित करने के लिए इनाम रखा चैलेंज किया तो भाग खड़े हुये
आयोजक
विगत दिनों अखिल भारतीय अंधश्रध्दा निर्मूलन समिति ने मिड ब्रेन
ऐक्टीवेशन को सही सिध्द करने वाले पर 21 लाख रूपये का इनाम रखा और नागपुर में एक
प्रेस कॉंन्प्रेस में आँख में पट्टी बांध कर पढने लिखने रंगों को पहचाने का
प्रदर्शन किया। और बताया की यह एक नया प्रकार का अंधविश्वास है ठग है। इसी प्रकार
प्रसिध्द वैज्ञानिक डाँ नरेन्द्र नायक ने
ऐसे किसी दावे को सही बताने वालों को 6 करोड़ रूपये देने का चैलेच किया। वे बताते
है की मेरठ की रंजना अगरवाल को मानव अधिकार मंत्रालय ने बाक़ायदा एक प्रमाण पत्र
दिया आँख में पट्टी बांध कर पढने के लिए। जबकि उनके साथ लाईव इंडिया टीवी चैनल में
पेनलिस्ट के रूप में हुऐ एक कार्यक्रम में रंजना अगरवाल का पर्दा फास किया था।
रंजना अगरवाल को ट्रेनिंग देने वाले स्मृति फ़ाउंडेशन के कर्ताधर्ता राजीव आहुजा
पहले तो डॉ नायक के चैलेज को स्वीकार कर दिया बात में कार्यक्रम में नही आये टाल
मटोल करते रहे। अंत में उन्होने कहा वे इस बिज़नेस को छोड दिया और भाग खडे हुये।
तब से 6 करोड की राशि इस बाबत आज भी इनाम के लिए रखी हुई है लेकिन मिड ब्रेन एक्टीवेशन
के आयेाजकों ने अब तक इस चैलेग को स्वीकार नही किया है।
मुख्य आपत्ति क्या है
अंधविश्वास और चमस्कार की वैज्ञानिक व्याख्या करने वाले डॉ
नायक की मुख्य आपत्ति इस बात पर है की वे बच्चों को झूठ बोलने की ट्रेनिंग दे
रहे है। जो की एक अपराध है, मानवता के
लिए पूरे समाज के लिए।