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बुधवार, 14 दिसंबर 2011

अमेरिका की लाजवाब सुरक्षा नीति पर हाय तौबा क्यूं ?


अमेरिकी हवाई अड्डा में ''माई नेम इज, शाहरूख खान`` शाहरूख खान के ये स्टाईलिश बोल सुरक्षा हेतु लगे कम्प्युटर को नागवार गुजरे और कम्प्युटर ने सुरक्षा अधिकरियों को गहन जांच के आदेश दे दियें लगभग दो घंटे तक शाहरूख खान को जांच हेतु रोके रखा बाद में पूरी संतुष्टि पश्चात छोड़ दिया। इस पर भारतीय मीडिया ने खूब हाय तौबा मचाईं शाहरूख खान न हुए भारत के बादशाह हो गये। न्यूज चैनलों ने टी आर पी बढ़ाने को कोई भी मौका हाथ से जाने न दिया। शाहरूख की सुरक्षा जांच को भारत की बेइज्जत्ती के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया। क्या भारत की इज्जत इतनी सस्ती है कि अभिनेता की सुरक्षा जांच से बेइज्जत हो जाये। जबकि गौरतलब है कि इससे पहले अमेरिका में जसवंत सिंह की जांच के दौरान कपड़े भी उतारे गये तथा कुछ दिन पूर्व पूर्वराष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम को भारत में ही अमेरिकी हवाई कम्पनी के सुरक्षा अधिकारियों ने आम आदमी की भाती रेगुलर जांच की ।तब मीडिया की शायद नींद नही खुली रही होगी। लेकिन बाद में कई बुध्दिजीवियों ने इन समस्त जांच पर खूब कड़ी आलोचना की तथा अमेरिका को जी भरकर कोसा भी। उनका मानना है कि व्ही.आई.पी. की जांच उसकी इज्जत से खिलवाड़ है ये जांच नही होनी चाहिए। अमेरिका बार-बार ऐसा करके हमारी इज्जत से खिलवाड़ कर रहा है भारत को चाहिए की उसका विरोध करें।
दरअसल ऐसा सोचने वाले तथा हाय तौबा मचाने वाले लोग उसी पुरानी मानसिकता वाले लोग हैं जो व्ही.आई.पी. को इन्सान बाकि को जानवर समझते है। व्ही.आई.पी. यानी पैसे वाला या हर वो आदमी जो आम आदमी नही है। भारत में हर व्यक्ति सुरक्षा या अन्य किसी भी प्रकार की जांच से बचना चाहते है। एक अदना सा पुलिस का सिपाही को ही देख लिजिए उसकी छोटी सी मोटर सायकल में लिखा होता है। बड़ा सा ''पुलिस``उद्देश्य एक मात्र सुरक्षा जांच (ट्रफिक जांच भी) से बचनां चाहे पंच हो, सरपंच हो, पार्षद हो, विधायक हो, या सांसद हो सभी की गाड़ी के नेम प्लेट पर ऐसा चिन्ह जरूर होगा। जो सुरक्षा जांच टीम पर भारी पड़ेगां और वह व्यक्ति जांच से बच जायेगा। जांच से बचा यानी इज्जत बच गई। सिर्फ इज्जत बची ही नही बल्कि इज्जत बढ़ भी जाती है ऐसे जांच से बचने से। देखिये कितनी काम की है ये जांच। तभी तो सारे व्ही.आई.पी. जेड सुरक्षा १-४ के गार्ड की सुरक्षा लेने हेतु जुगत लगाते रहेते है चाहे इसके लिए फर्जी फोन का सहारा ही क्यो न लेना पड़ जाये। आज कर इस फेहरिस्त में क्रिकेट खिलाड़ी, अभिनेता भी शामिल हो गये। नेताओं का तो इसमें जन्मजात अधिकार था ही। फिर प्रश्न खड़ा होता है वह नेता नेता ही कैसा जो आम आदमी से असुरक्षित है, वह खिलाड़ी सिर्फ खिलाड़ी तो नही है जिसे सुरक्षा चाहिएं अभिनेता में क्या खोट है जो अपने चाहने वालों से असुरक्षित है।
भारत में बड़ी जबरदस्त परंपरा है जिसकी सुरक्षा में आदमी लगे हो उसकी सुरक्षा जांच नही होती। जब कोई हवाई जहाज से आये तो उसकी जांच नही होती। जब कोई ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे से उतरे तो उसकी जांच नही होती। अगर जांच कि गई तो उस  सुरक्षा अधिकारी की जांच चालू हो सकती है। हो सकता है बाद में उसका स्थानांतरण या निलंबन तक ये जांच चलती रहे। इससे अंदाज लग सकता हे कि कितना निरंकुश है हमारा व्ही.आई.पी. समाज इसी मारसिकता का फायदा आंतक वादियों को मिलता है यही कारण है कि अमेरिका में ९/११/२००१ के बाद एक भी आतंकवादी हमले नही हुए। लेकिन भारत में पूरा कलेण्डर आतंकवादी हमले भरा हुआ है। आखिर क्यूं भारतीय व्ही.आई.पी. सुरक्षा जांच  का सामना करने से कतराता है क्या सिफ अह ंके कारण। कितने ही आतंकवादी भारत में एक व्ही.आई.पी. की तरह प्रवेश हो जाते है। हाल ही में दिल्ली में हुए हमले के सभी आरोपी ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में सफर करते हुए विस्फोटक सामग्री लेकर आये थे। जो व्ही.आई.पी. सदृश्य होने के कारण जांच से बज गये। बंबई का प्रसिध्द ताज पांच सितारा होटल जिसमें जाने का सपना आम-आदमी देख भी नही सकता। आतंवादी उसमें भी व्ही.आई.पी. बनकर घुस गये। क्योंकि भात में सब कुछ हो सकता है व्ही.आई.पी. की जांच नही हो सकती यह बाद देश के दुश्मन को अच्छि तरह मालुम है। क्योकि इससे व्ही.आई.पी. की इज्जत में बट्टा लग जाता है।
अभि वक्त अमेरिका पर उंगली उठाने का नही हैं। बल्कि उससे सीख लेने का है। यह गहन विचार का बिन्दु है कि टूईन टावर हमले के बाद आज तक अमेरिका में कोई आतंकवादी हमला नही हो सका। उनकी सुरक्षा नीति से हमे सीख लेनी चाहिए। अमेरिका आज विश्व में सर्वश्रेष्ठ है तो हमे भी अपनी आत्ममुग्दधा से बाहर आना चाहिए। उनके सर्वश्रेष्ठता के मापदण्ड को देख कर खुश होना चाहिए। जहां भारत में आम आदमी पर सारे नियम लागु होते है वही व्ही.आई.पी. एवं पुजीपतियों का बोल-बाला बढ़ रहा है। ऐसे में एक सरकारी होहदेदार सरकारी खजाने को चट करने में लगा हुआ। चाहे चारा घोटाला हो या स्टांप घोटाला या हवाला का मामला या फिर सरकारी सम्पतियों का दुरूपयोग का मामला हो। जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति को व्हाईट हाउस में रहने एवं अपनी निजी सेवाओं का खर्चा स्वयं वहन करना पड़ता है। अमेरिका में सुरक्षा जांच को महत्व देना प्रतिष्ठित नागरिक गुण माना जाता है। अमेरिका की सुरक्षा नीति ऐसी है जिसमें मंत्री, नेता, अफसर, राष्ट्रपति, सेलिब्रेटी यहां तक की जज भी जांच के दायरे से बाहर नही है। यहां प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा जांच की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। ताकि कोई भी आतंकवादी गतिविधीयां न हो सके। ऐसी व्यवस्था से मजाल हे कोई चिड़ीया भी पर मार सके।
अब प्रश्न यह उठता है कि भारत में आतंक वाद तथा नक्सलवाद सिर चढ़ कर बोल रहा है। हमारी सुरक्षा व्यवस्था बेमानी हो रही है जो केवल आम आदमी को परेशान करने का सबब बन गई है। तो क्या भारत अमेरिका के विरोध करने में अपनी शक्ति जाया करेगा या उनकी लाजवाब सुरक्षा नीति से कुछ सीख लेने की चेष्टा भी करेगा।