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मंगलवार, 16 जून 2015

भारत में रेप संस्कृति के सामाजिक ताने बाने

  • संजीव खुदशाह
 16 दिसंबर 2012 चर्चित दिल्ली रेप केस की आग अभी पूरी ठंडी हुई ही नही थी की 19 अप्रैल 2013 को एक पांच साल की बच्ची के साथ रेप होने का मामला सामने आया। ज्ञातव्य है कि यह बच्ची 15 अप्रैल को ग़ायब हुई। बच्ची के माता पिता थाने में शिकायत करने गये तो दिल्ली पुलिस ने उन्हे 6 घंटे थाने में बिठाये रखा। तीन दिन बाद 17 अप्रैल को बच्ची बंद कमरे में रोती पाई गई। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने बच्ची के मां बाप को 2000/- देते हुए कहा कि शुक्रमनाओं बच्ची जिंदा मिली है, अब केस बंद करो मीडिया को नही बताना। भारतीय पुलिस (सिर्फ दिल्ली पुलिस नही) अपनी दरिन्दगी की पराकाष्ठा में यहां मौजूद है। यह बताते हुए मेरे पेन कि श्याही क्यो नही खत्म हो गइ की उस बच्ची के नाजुक हिस्से में दो मोमबत्ती एक शीशी पाई गई। इसके बाद प्रदर्शन के दौरान एक लड़की पुष्पा को .सी.पी. ने थप्पड़ मार कर गिरा दिया।
यहां मेरा मकसद प्रचलित रिवाज के अनुसार पुलिस को कोसना नही है। क्योंकि पुलिस भी आरोपी मनोज की तरह भारतीय पुरूष ही है, जो औरत को एक भोग्या ही मानता है उससे ज्यादा कुछ नही। मेरा मकसद भारत में रेप संस्कृति के जड़ तक पहुँचना है।  अगर आपको ये जानकारी दू की 16 दिसंबर प्रकरण में यही मनोज बलात्कार के खिलाफ केण्डल लेकर दिल्ली के इण्डिया गेट में घुमा करता था, तो शायद आपको आश्चर्य नही होना चाहिए। क्योंकि पुलिस को कोसना, बेरिकेटस तोड़ना, नारेबाज़ी करना, केण्डल लाईटस जुलूस में शामिल होना यदि रेप की समस्या से उबरने का उपचार होता तो अब तक रेप की घटनाओं का नामोंनिशा खत्म हो चुका होता। ये कैसे माना जा सकता है कि केण्डल जुलूस में कोई भी पुरूष ऐसा नही होगा जो किसी लड़की को गलत इरादे से स्पर्श नही किया होगा। या दुष्कर्म का प्रयास नही किया होगा। क्या केण्डल जुलूस में शामिल होना, रेप के विरोध में टीवी के सामने हाय तौबा करना, इस बात के प्रमाण है की वे अब रेप नही करेगे। इसी प्रकार ऐसी हजारों केडल लेकर नारे लगाती लड़कियाँ होगी जिन्होंने अपने भाई, पति, पिता की ऐसी गलतियों पर पर्दा डाल रखा है। लेकिन आज ऐसी हजारों भेड़िया-भेड़िनियां मासूमियत का मुखौटा लगाकर नारे लगाने में व्यस्त है। अब भेड़िये और मासूमों के बीच की लकीर महीन होकर मिट गई है। भेड़िये केण्डल लेकर तुरंत मासूमों की जामात में शामिल हो जाते है। हम क्यों नही मानते की दरिंदा हम सब में हे, वो हम, आप कोई भी हो सकता है। दरिंदा हमारी संस्कृति में वर्षो से रचा बसा है। आईये देखे प्राचीन ग्रन्थ रेप की वकालत किस प्रकार करते है।
महाभारत आदिपर्व, अध्याय 122 में पाण्डु ने कुन्ती से क्या कहा
अनावृताः किल पुरा स्त्रिय आसन् वरानने।।
कामचार विहरिण्यः स्वतन्त्र श्चारूहासिनी।।4।।
तासां व्युच्चारमाणानां कौमरात् सुभगे पतीन।
ना धममोंऽभूद्वरारोहे हि धम्र्मः पूराभवत्।।5।।
अर्थः हे सुंदरी! पूर्व काल में स्त्रियों को कुछ रोक टोक थी। हे सुहासनी! उन दिनों वे स्वतंत्र रहकर भोग विलास की आषा में स्वच्छन्दता पूर्वक घूमा करती थी।।4।। हे सुभगे! वे कौमारावस्था से ही व्यभिचार करती थी और इससे उनको अधर्म नही होता था, क्योंकि वही पूर्व काल का धर्म था ।।5।।
इसके बाद पाण्डु ने दुष्कर्म को सही ठहराने के लिए श्वेतकेतु की कथा कही। श्वेतकेतु के सामने ही कोई ब्राह्मण उसकी माता का हाथ पकड़कर उसे बल पूर्वक किसी अन्य स्थान पर कुकर्म करने के लिए खींचने लगा। इस अनुचित कार्य को देखकर मारे क्रोध के श्वेत केतु के ओठ कापने लगे। तब उसके पिता उद्धालक ने कहा
मा तात कोपं कार्षीस्त्वमेष धम्र्मः सनातनः।
अनावृता हि सर्वेषां वर्णनामंगना भुवि।
यथागावः स्थितास्तात स्वेस्वे वर्णे तथा प्रजा।।14।।
अर्थः हे तात्! क्रोध मत करो, यही सनातन धर्म है। इस भू मंडल में सभी वर्णों की स्त्रियां बिना किसी बंधन के है। सभी जन अपने अपने वर्ण के साथ उसी प्रकार व्यवहार करते है जैसे गाये।।14।।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि संतानहीन पाण्डु, पुत्र प्राप्ती हेतु अपनी पत्नी को नियोग के लिए तैयार कर रहे है। स्पष्ट है नियोग और कुछ नही ऋषियों से बलात्कार है इसलिए कुन्ती को दुष्कर्म के पक्ष में तर्क दिये गये। इस प्रकार कोटिल्य शास्त्र से लेकर विभिन्न ग्रन्थो में ऐसे सैकड़ो संदर्भ भरे पड़े है जो परोक्ष अपरोक्ष रूप से दुष्कर्म की वकालत करते है।
क्या आज का भारतीय समाज इन शास्त्रों (किताबों) को दरकिनार करने की हिम्मत रखता है। हमारे पाणीग्रहण एवं निकाह की पध्दती कन्या को वस्तु का दर्जा देती है और कमजोर बना देती है। क्या हम इन रीति रिवाजों को तोड़ने की ताकत रखते है। वर्षो से ऐसी किताबें गांव-गांव प्रचारित कि गई है जो नारी को ढोल, गवार और पशु का दर्जा देती, क्या कभी इन किताबों की होली जलाने की हिम्मत करेगी भारतीय नारी, मुझे लगता है भारत की प्राचीन रेप संस्कृति में बदलाव नही हो सकता। चाहे पूरा देश केण्डल मार्च करे, मीडिया आसमान सिर पर उठा ले। क्योंकि घर-घर गांव गांव शहर शहर, भागवत कथा, नवधा रामायण की कथा, पौराणिक धारावाहिकों के माध्यम से युवा वर्ग यही तो सीख रहा है। उसके मन का नायक वही है जिन्हाने वस्त्रहीन नहाती महिलाओं के कपड़े चुराये, जिन्होंने वृन्दा, अहिल्या के साथ दुष्कर्म किया।
दरअसल केण्डल लिए ये लोग कभी नही चाहेंगे की उनकी इस सामंती संस्कृति में बदलाव आये, क्योकि यही वह संस्कृति है जहां पीड़िता में ही दोष निकाला जाता है। और दोषी को वीर माना जाता है। पुलिस तो बेचारी इसी संस्कृति का पालन कर रही है। उसका दोष कैसा आखिर वे भी तो इसी संस्कृति में रचे बसे लोग है।
अब हम कह रहे है कि 16 दिसंबर के बाद इतना केण्डल मार्च किया प्रदर्शन किया फिर भी दुष्कर्म बंद नही हुआ। हम ये कैसे मान ले कि दुष्कर्मी नायक की पूजा करने वाली महिला का भाई पिता पति दुष्कर्म नही करेगा। प्राकृतिक नियम के अनुसार वह अपने आदर्श का अनुसरण करने में जरा भी नही हिचकेगा। यही नियम भारतीय महिला पर भी लागू होगा यदि उसका नायक वही दुष्कर्मी होगा तो उसकी नजर में दुष्कर्मी भाई, पिता, पति भी एक नायक की तरह होंगे की एक बलात्कारी। दरअसल भारतीय जन मानस व्यक्तिवादी जीवन जीता है की समाजिक उसके बगल में रेप हो तो वह अपने आप को भाग्यशाली समझता है की उसके घर ऐसा नही हुआ। इस लिए रेप सहित कोई भी समाजिक बुराई खत्म नही हो सकी। रेपिस्ट से सिर्फ उसे लड़ना होता है जिसके साथ घटना हुई। बांकि उसे ताने देने हेतु मुस्तैद रहते है।
दुष्कर्म के मामले में एक महत्वपूर्ण और चैकाने वाला तथ्य यह है कि ज्यादातर बलात्कार दलित बहुजन स्त्रियों पर ही होते है। और उसे दबाने के लिए लोकतंत्र के चारो खंभे समान गति से कार्य करने लगते है। 16 दिसंबर की घटना में पिड़िता का नाम जग जाहिर  नही किया गया लेकिन दलित बहुजन चिंतको ने ये आशंका व्यक्त की थी ये इस रेप को मीडिया हाथो ले रहा है तो ज़रूर पिड़िता सर्वण वर्ग की होगी। बाद में यह बात सामने आई की उसका संबंध पाण्डे परिवार से रहा है। मीडिया ने उसे साहसी दामिनी जैसे जाने कैसे कैसे उप नामों से नवाजा, और तो और अमेरिका ने भी पुरस्कार की घोषणा कर दी। जबकि असल जिंदगी की दामनी साहसी दलित फुलन देवी को कभी इस प्रकार तवज्जो नही दिया गया। दरअसल ये सभी खंभे उन पुराने शास्त्रों का पालन कर रहे है की संविधान का।

 भला हो उस अंग्रेजों के कानून का जिसने रेपिस्ट को अपराधी ठहरा दिया, नही तो आज भी रोज हजारों रेप के मामले महज 2 या 3 हजार रू के लेन देन में निपटा दिये जाते। शायद इसलिए सनातनवादी लोग और मीडिया हमेशा पाश्चात्य को कोसती रहती है क्योंकि अब उनके अययाशी के रास्ते बंद हो रहे है।