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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

वेलेन्‍टाईन डे के विरोध का वास्‍तविक मकसद क्‍या है

प्रेम का संदेश देता संत वेलेन्‍टाईन दिवस
संजीव खुदशाह
सदियों से प्रेम और उसकी भावनाओं को धर्म और संस्कृति के ठेकेदारों ने अपनी पैरो की जूती समझा है तथा प्रेम के दीवानों पर सैंकड़ो सितम ढाये है। बावजूद इसके प्रेम के नाम पर अपने आपको न्‍यौछावर कर देने वाले संत वेलेन्‍टाईन के बलिदान दिवस को पूरी दुनिया बडी सिदृत मोहब्‍बत का त्‍यौहार मनाती है। आज विश्व की युवा पीढी और हर वह व्यक्ति जो अपने जीवन साथी को प्यार करता हैअपने प्रेम के इजहार के लिए 14 फरवरी के इस मुकदृदस दिन का बडी बेसब्री से इंतजार करता है।
वेलेन्टाइन डे क्यों मनाया जाता है इसके पीछे कई मान्यताएं है। सर्वस्वीकृत मत और तथ्य  ये है की रोम के दुष्‍ट दुराचारी सम्राट क्लॉ्डियस ने अपनी सैन्य शक्ति बढाने के उद्देश्य से अपनी प्रजा के बीच यह भ्रम फैला रखा था की पुरूषों को विवाह नही करना चाहिए इससे उनकी बुध्दि और शक्ति में कमी आती है। उसने इसके लिए बकायदा कानून बनाये और जनता के बीच कडाई से लागू कियासैनिक और राज्य के अधिकारियों को भी विवाह करने में पाबंदी लगाई गई। ऐसा कहा जाता है कि‍ संत वेलेन्टाईन सम्राट के इस कानून का विरोध करते और युवक युवतियों को मुहब्बत करने के लिए प्रेरित करते उनकी शादियाँ करवाते थे।  जब क्लोडिअस को इस बारे में पता चलाउसने वेलेंटाइन को गिरफ्तार करवाकर जेल में भेज दिया। जिस जेल में पादरी वेलेन्टाईन बंद थे वहां के जेलर की पुत्री का उन्होने उपचार किया था जिससे उन्हे  प्यार हो गया । रोम के सम्राट क्लॉ्डियस द्वारा संत वेलेन्टाईन की 14 फरवरी 269 इसवी को हत्या  करवा दी गई। मारे जाने से एक शाम पहलेउन्होंने पहला "वेलेंटाइन" स्वयं लिखाउस युवती के नाम जिसे वे बेहद प्यार करते थे। ये एक पत्र था जिसमें लिखा हुआ था "तुम्हारे वेलेंटाइन के द्वारा"।
ऐसी मान्यता है की प्रारंभ में रोम के निवासी इस दिन घरों में साफ सफाई किया करत थे और एक दूसरों को प्रेम का संदेश देते थे। यह संदेश हस्त लिखित होता था। बाद में यह दिवस प्रेम के आईकन के रूप में सर्व स्वीकृत होता गया। 1797 ईस्वी ब्रिटेन में पहले पहल छपे हुये संदेश भेजने की परंपरा शुरू हुई बाद में ग्रि‍टिंग (चित्रकारी के साथके रूप में प्रेम के संदेश को प्रेषित किया जाने लगा। वह हस्‍तलिखित पत्र आज इलेक्‍ट्रानिक कार्ड का रूप ले चुका है। बडी बडी कम्पनियाँ इस मौके पर तैयारी करती है और युवाओं को लुभाने का प्रयास करती है। अब होटलबाजारबाग बगीचे सजा ये जाते हैगिफ्ट आईटमों में छूट की पेशकश की जाती है। पूरा बाज़ार मानो सज धज कर तैयार हो जाता है।
विवाह दिवस के रूप में मनाया जाना:- वैसे प्रेम और प्रेम विवाह किसी मूहूर्त के मोहताज नही होते है। बहुत कम लोग जानते है कि इस दिन को विवाह दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वेलेन्‍टाईन दिवस के दिन विवाह किये जाने का क्रेज जोरों पर है प्रेमी जोडे विवाह करने हेतु इस दिवस को चुनते है। इसलिए इसे विवाह दिवस के रूप में भी जाना जाने लगा है। 14 फरवरी को ऐसी कई हाई प्रोफाईल शादियाँ सुर्खियों में रहती है जो कुण्‍डली मिलानविवाह मुहूर्त के बिना सात फेरे लेकर अपनी शादी को यादगार बनाना चाहते है।
वेलेन्‍टाईन को लेकर विवाद:- आज से 1700 सौ साल पहले जिस प्रकार नफरत का जहर फैलाने वाले कट्टरवादी और तानाशाही विचारधारा के लोग प्रेम के परवानो पर कहर ढाते थे। आज भी उस क्लॉ्डियस की संताने इन प्रेमियों पर जुल्‍म ढाने से बाज नही आजे है। लेकिन उनका तरिका बदल गया है। भारत में कुछ कट्टरपंथियों के द्वारा इस दिवस का विरोध किया जाता है। वे इस दिवस को मनाने से मना करने के कई हास्‍यास्‍पद तर्क देते है जैसे इस प्रेम (वेलेन्‍टाईनदिवस को मनाने से भारतीय संस्‍कृति नष्‍ट हो जायेगीयह विदेशी संस्‍कृति का हमला हैप्रेम करना गलत है आदि आदि। कुछ लोग इस दिवस का भारत में प्रभाव खत्‍म करने की गरज से बजुर्ग दिवस, हिन्‍दू संस्‍कृति विकृत दिवस, पूजन दिवसमातृ-पितृ दिवस मनाने तक की घोषणा करते है। वे अपने आप को भारतीय संस्‍कृति का ठेकेदार समझते है। उनकी नजर में भारतीय संस्‍कृति इतनी कमजोर है की वेलेन्‍टाईन दिवस मनाने से नष्‍ट हो जायेगी, न की और मजबूत होकर फलेगी फूलेगी।

वेलेन्‍टाईन डे के विरोध का वास्‍तविक मकसद क्‍या है यदि गौर से देखे तो जो कट्टरपंथी लोग इस दिवस का विरोध करते हैउनका संस्‍कृति और धर्म से कोई लेना देना नही है वे जानते है कि उन्‍हे लोगो का समर्थन नही है वे इस तथ्‍य से तिल मिला जाते है और किसी न किसी प्रकार से चर्चा में बने रहना चा‍हते हैशायद ये एक सबसे आसान रास्‍ता है मी‍डिया में बने रहने का। दूसरा मकसद यह है कि वह क्‍लोडियस की तरह जनता की आँखो में घूल झोक करनफरत और घृणा का बीज बो कर लंबे समय तक सत्‍ता में काबि‍ज रहना चाहते हो। लेकिन सुखद है कि भारत का युवा इन सब से दूर प्रेम के इस दिवस को बडे ही तहजीब से मनाता आ रहा है। सात समुन्‍दर पार से आये इस प्रेम के त्‍योहार को यहां के युवा ही नही बुजुर्ग भी बडे शान से मनाते है। भारत में जातिधर्मऊंच-नीच के भेद को मिटा कर वास्‍तव में वासुदेव कुटुम्‍बकम का आगाज करने की पहल की जा चुकी है। यही बात इन नफरत के झंण्‍डाबरदारों को खटकती है। बडी ही दुख की बात है जब हमारे देश की दीवाली अमेरिका के वाइट हाउस में मनाई जाती है  तो हम गौरांवित होते है और जब पश्चिमी देशेा का कोई त्‍योहार हमारे देश में मनाया जाता है तो हम हाय तौबा मचाते है। हमें इस दोगली नीति से बचना होगा। हमारे संविधान में लिखा है कि भारत एक स्वतंत्र और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ सबको अपनी तरह जीवन जीने अधिकार है। यह अधिकार छीनने का हक किसी को भी नही है स्‍वयं माता पिता को भी नही।
Publish in novbharat 8 Feb 2015 as Cover Story