अंधविश्वास के खिलाफ जंग
संजीव खुदशाह
देश के जाने माने वैज्ञानिक डॉ नरेन्द्र नायक के द्वारा विगत दिनों रायपुर में प्रस्तुत अंधविश्वास और चमत्कार पर दिया गया उनका आडियों विडियों व्याख्यान बेहद सराहनीय रहा। सराहनीय इसलिए भी रहा क्योकि जहां आज के दौर में पढे लिखे डाक्टर इंजिनीयर अंधविश्वास को मान रहे, उसका आस्था के नाम पर बचाव भी कर रहे, ऐसे माहौल में अंधविश्वास के विरूध्द अलख जगाए रखना वास्तव में एक साहस का काम है।
दरअसल डॉ नरेन्द्र नायक अंधविश्वास शब्द को सही नही मानते है। वे कहते है कि अंधविश्वास शब्द वास्तव में अंधे लोगों का अपमान है। जो हमें नही करनी चाहिए क्योकि जिसे हम अंध विश्वास कहते है वह आँखों देखा गलत विश्वास है। वे अंधविश्वास के स्थान पर गलत विश्वास शब्द का प्रयोग करना ज्यादा ठीक समझते है।
वे कहते हे संसार में कोई भी चीज चमत्कार नही है। हर चमत्कार के पीछे ठोस वैज्ञानिक कारण है। हमारी अज्ञानता ही चमत्कार है, जब इन चमत्कारों का कारण एक साधारण व्यक्ति जान जाता है तो वह विज्ञान कहलाता है और जब ये कारण किसी ठग की जानकारी में आता है तो वह अंधविश्वास बन जाता है।
दरअसल भारत में बहुत बडा वर्ग अंधविश्वास का पोषण करना चाहता है। इसके पीछे उनकी राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक हित छिपे है। अंधविश्वास को फलने फूलने के लिए धर्म सबसे आसान खाद युक्त ज़मीन होती है। अगर ऐसा नही होता तो धर्म के प्रसार के नाम पर नर संहार नही हुये होते।
दरअसल आज आस्था और अंधविश्वास की महीन किन्तु स्पष्ट लकीर को मिटा दिया गया है। आज जब मंगल यान छोड़े जाने के दौरान इसरो प्रमुख द्वारा तिरूपती जाकर मंगल शांति की पूजा की जाती है तो पूरा संसार हमारी ओर कौतूहल की निगाह से देखता है। यह यकीन करना मुश्किल है की किस प्रकार देश के तथाकथित क्रीम वर्ग (बुद्धजीवि वर्ग) का अंधविश्वास के गर्त में डूब जाना, सिर्फ डूब ना नही बल्कि उस अंध विश्वास को अपनाने में गर्व भी करना सबसे बडा हास्यास्पद है।
वे कहते है आज देश में तीक्ष्ण बुध्दी के केन्द्र माने जाने वाले सारे संस्थान अंधविश्वास के केन्द्र बन चुके है। परिक्षाओं में पास होने के लिए मंदिर मस्जिद मजारों गुरूद्वारों में यहां के छात्र चढावा चढाने में आगे होते है। ये सारे संस्थान अंधविश्वास की गीरफ्त में आ चुके है चाहे IIT कानपूर रूरकी या खरगपुर हो या IIM हो या ISSRO हो चाहे IMA हो। किसी भी संस्थानों के छात्रों प्रोफेसरों द्वारा इन अंधविश्वास के खिलाफ आवाज नही उठाये गये। आखिर क्यों? इसका कारण है बचपन, हमारे यहां बच्चों को प्रश्न करने नही दिया जाता । जब बच्चा पहली बार प्रश्न उठाता है तो हम उसे जलील करते है। इतनी हद तक जलील करते है की उसकी भविष्य में प्रश्न पूछने की संभावनाएं खत्म हो जाती है। यदि बच्चा धर्म पर प्रश्न करता है तो हम बौखला जाते है। तय है हम उपहार स्वरूप अपने बच्चो को अंधविशास ही देते है। जब वही व्यक्ति वैज्ञानिक बनता है तब भी अंधविश्वास की जकड से निकल नही पाता।
अंधविश्वास पर ठग करने वाले हमेशा इन्ही अंधविश्वासी क्रीम लोगों का हवाला देकर आम पढे लिखे लोगों की जबान बंद कर देते है। अंधविश्वास के झण्डाबरदार के आतंक का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की पिछले वर्ष अंधविश्वास निवारण के अग्रणी कार्यकर्ता श्री नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या उनके द्वारा कर दी जाती है। वह भी सिर्फ इस लिए क्योकि वे आम लोगों को अंधविश्वास से मुक्ति का मार्ग दिखा रहे थे।
वे बताते है कि किस प्रकार हिमालय की चमत्कारी जडीबुटियों के नाम पर टीवी विज्ञापन के द्वारा जनता में अधंविश्वास फैला कर उनकी गाढ़ी मेहनत की कमाई को लूटा जाता है। लेकिन धर्म के नाम पर मठाधीश समर्थन में तो सरकार मौन खडी नजर आती है। उसी प्रकार जर्मनी के टेक्नोलाजी का प्रयोग करके पेंडेन्ट बनाया जाता जिसे चमत्कारी अल्लाह ताबीज या हनुमान चालीसा यंत्र लाकेट के नाम पर बेचा जाता है। आज अंधविश्वास और विज्ञान की लडाई चरम पर है और जीत अंत में विज्ञान की ही होगी।
ज्योतिष, वास्तु आदि के साथ विज्ञान शब्द जोड देने से ये सब विज्ञान सम्मत नही हो जाता है। ठग आम जनता को ठगने के सारे हथकण्डे अपनाते है। वो कभी धर्म का आड लेता है तो कभी विज्ञान की गलत व्याख्या का। धर्म की कट्टरता को बढावा देकर अपने अंधविश्वास को वैज्ञानिकता का जामा पहनाना कोई नई बात नही है। और रोडे अटकाने वालों का नर संहार वे ही धर्म करते है जो अपने आपको असहिसुष्णता का दावा करते नही थकते। ईसाई धर्म में गैलिलियों, कापरसनिकस, ब्रुनी जैसे वैज्ञानिक की हत्या सिर्फ इसलिए की गई क्योकि उनके निष्कर्ष धर्म के विपरीत थे। 11वी से 14वी शताब्दी के बीच ईसाई धर्म के प्रचार हेतु विरोधियों की हत्या करना किसी से छिपा नही है। मुस्लिम कट्टर वादियों के द्वारा किये जाने वाले नर संहार इसी धार्मिक विश्वास भेद खुल जाने के डर से किया जा रहा है। इसी प्रकार का विश्वास आज भारत में भी कट्टर हिन्दूओं द्वारा किया जा रहा है वो भी बडी ही जोर शोर से। वे ईसाई कट्टर वादियों, मुस्लिम आतंकियों के नक्शे कदम में चलकर इन्ही अल्पसंख्यकों के प्रति जहर उगलते है। चर्चो और मस्जिदों में हमलें इसी के परिणाम है। इसके उदाहरण आप सोशल मीडिया जैसे वाटस ऐप, फेसबुक में आसानी से देख सकते है। ऐसे संदेशों को फारवर्ड या लाईक करने वाले मासूम लोग इन कट्टर वादियों के आसान शिकार और हथियार बन जाते है। क्योकि इन्हे पिक्चर का केवल एक ही पहलू दिखाया जाता है। यहां जिम्मेदारी उन लोगों की ज्यादा बनती है जो इन कट्टर वादियों के षडयंत्र को जानते है। उन्हे चाहिए की इसका अपोज करे, सोशल मीडिया द्वारा लोगों को पिक्चर के दूसरे पहलू से अवगत कराये। तभी अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई को आगे बढाया जा सकता है।
जिस देश का शिक्षित वर्ग अंधविश्वास के गर्त में जा रहा हो उस देश के द्वारा विश्वगुरू बनने का दावा करना क्या अपने मूह मिया मिट्ठू बनने जैसा नही है? क्या भारत कभी इस गर्त से बारह निकल पायेगा?
सकारात्मक पहलू यह है कि अंधविश्वास निवारण पर केन्द्रित इस कार्यक्रम में बडे हाल का खचा खच भरा होना वो भी वर्कींग डे पर, इस बात का प्रमाण है की भारत का आम आदमी इन अंधविश्वास से मुक्ति चाहता है। अंधविश्वास को करीब से समझना चाहता है ताकी उसका खात्मा किया जा सके। खास तौर पर धन्यवाद के पात्र वे है जिन्होने जाने अंजाने अंधविश्वास को मिटाने की पहल की या पहल करने की आकांक्षा रखते है।
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