घर्म की छांव में
संजीव खुदशाह
धर्म की छांव में
तूने क्या खोया क्या पाया ?
दिखाकर अगले जन्म का दिवा स्वप्न,
इस जनम को नरक की नियती बनाया।
मै जानता हूं,
अगर मै कुछ कहता
ये मेरी जीभ काट ली जाती।
मै जानता हूं,
अगर मै कुछ सुनता
मेरे कानों में गर्म लावे ठूंस दिये जाते।
जिसे बताते थे तुम अपना, रहस्य खजाने का
जिस पर तुम आध्यात्म के नाम पर इठलाते थे इतना
मैने आज इनको पढ़ लिया है।
जान लिया है वो कारण,
जीभ को काटने का
कानो में गर्म लावे ठूसने का
मेरे ही पूर्वजों का पौरूष दफ्न है।
तुम्हारी इन पोथियों में, जिन्हे तुमने दानव राक्षस पुकारा था
उस तुम्हारी रहस्य की पिटारी को
मैने अब पढ़ लिया है,
पढ़ लिया है कि कैसे तुम
आध्यात्म के नाम पर सेक्स का मजा
बदल-बदल कर लेते थे।
जान लिया है कि कैसे तुमने मूलवासी को खदेड़ा है,
उनकी बेटियों को देवदासी बनाकर
धर्म के नाम पर तुमने
अपनी ही बहन बेटी और बहू को,
कर दिया है पहचानने से इनकार
जन्म लेते ही बेटी की बली ले ली,
बहु को सती के नाम पर जलाया
धर्म की छांव में
तूने क्या खोया क्या पाया ?
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