सामाजिक
बहिष्कार पर रोक कैसे हो?
संजीव
खुदशाह
हमारे
देश में अनेक जातियां उपजातियां है जिनके अलग-अलग कानून कायदे और रूढ़ियां है तथा
उन समाज के सामाजिक दबंगों का एकछत्र राज चलता है। परंपराओं वा रीति-रिवाजों को
जबरजस्ती मनवाने ना मानने पर सामाजिक बहिष्कार का सिलसिला चलता है। बाद में
बहिष्कृत व्यक्ति से दारु, मुर्गी, बकरा, मोटी रकम वसूल कर शुद्धिकरण पश्चात समाज
में पुनः मिलाया जाता है। जो की पूरी तरह से संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। सामाजिक बहिष्कार समाज के दबंगों का ऐसा हथियार है, जो उसी
समाज के किसी व्यक्ति या परिवार का जीवन बर्बाद कर देता है। जहां एक पीडि़त परिवार
दाना पानी रोजगार के लिए तरसता है। इसके लिए स्पष्ट कानून नही होने के वजह से
पीडि़त को न्याय मिलना कठिन हो जाता है।
वर्तमान
में जातीय कट्टरता बढ़ी है। इसके साथ-साथ सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं भी बढ़ी हैं।
इसका प्रमुख कारण है आज के राजनैतिक हालात, दरअसल आज का समाजिक नेता जिसे मैं
जातीय नेता या दबंग कहना ज्यादा पसंद करूंगा। अपने समाज के लोगों को समाजिक सदस्य
के रूप में नहीं बल्कि एक वोटर के रूप में देखता है। इसीलिए उसे अपने नियंत्रण में
रखना चाहता है। ताकि समय अनुसार राजनीतिक पार्टी या नेताओं के सम्मुख उसे भुनाया
जा सके। दरअसल वोट के जातीय गणित की बुनियाद भी यही है। यह मुद्दा तो बहुसंख्यक
जाति के बजाय मंझोली जाति यह अल्पसंख्यक जाति में इसके इतर जातीय पहचान बनाने की
भी मंशा रहती है। जातीय नेता का लक्ष्य बहिष्कार के नाम पर अपने दुश्मन को ठिकाने
लगाना, निजी हित तलाशना या समाज में अपना डर पैदा करना रहा है। यदि समाजिक बहिस्कार
समाज के हीत में होता तो बलात्कारी, हत्यारे एवं अपराधियों को समाज से बहिस्कृत
किया जाता। लेकिन ऐसा होता नही ज्यादातार बहिस्कार मुडन नही कराने, पैर नही
छूने, गैरजाति में विवाह करने, कोई असाध्य बिमारी हो जाने, समाजिक नेता से बैर
होने पर किया जाता है।
केवल
गरीब या लाचार का ही बहिष्कार क्यों किया जाता है?
प्रत्येक
मामले का गहन अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकलता है कि जाति का बहिष्कार उस समाज
के कमजोर व्यक्ति का ही किया जाता पाया जाता है। मुझे एक घटना याद आ रही है एक
समाज के विधायक के बेटे ने गैर समाज की बेटी से प्रेम विवाह किया और आलीशान शादी
की। गांव में अपने समाज को भी नहीं बुलवाया, बावजूद इसके उनका सामाजिक बहिष्कार
नहीं हुआ। सामाजिक नेता उनकी तारीफ करते नहीं थकते थे। दूसरी ओर ऐसे हजारों मामले
हैं जिनमें वही समाज अंतर्जातीय विवाह होने पर समाजिक व्यक्ति को दंडित किया गया
और सालों समाज से बहिष्कृत रखा।
सामाजिक बहिष्कार रोकथाम कानून
का मतलब रीति रिवाज या रूढ़ियों परंपराओं को तोड़ना नहीं है
कुछ
लोगों में यह भ्रम है कि सामाजिक बहिष्कार कानून लागू होने का मतलब उनके रीति रिवाज
रूढ़ियों का नामोनिशान खत्म होना। जबकि यह गलत है रीति-रिवाज मनुष्य की इच्छा पर
निर्भर होने चाहिए ना की किसी के द्वारा थोपा जाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति मृत्यु
पर मुंडन नहीं करना चाहता, तो कानून उसे यह अधिकार देता है कि वह मुंडन ना कराएं।
उसका यह कानूनी अधिकार छीनने का हक उसकी जातीय पंचायतों को भी नहीं है। समाजिक
बहिष्कार का मतलब समाज को जोड.ना नही उसे तोड़ना है। बहिष्कृत व्यक्ति अक्सर
संगठित होकर नया समाज का निर्माण कर लेते है।
क्या गांव
की पंचायत और जाति पंचायत न्यायपालिका का काम हाथ में लिए हुए हैं?
सामाजिक
बहिष्कार का डर दिखाकर ग्रामीण पंचायत कानून को ठेंगा दिखाती है। स्थानीय ऐसे
गांव में मेरा जाना हुआ। उस गांव के मुखिया ने कहा हमारा गांव एक आदर्श गांव है।
यहां 20 सालों से कोई पुलिस के केस दर्ज नहीं हुआ। कोई
कोर्ट में नहीं गया। मैंने पूछा-तो आपके गांव में बलात्कार, हत्या, आत्महत्या,
लड़ाई झगड़े नहीं होते होंगे? तो उन्होंने बड़ी दबंगई
से बताया- होते सब हैं लेकिन हम ऊपर तक पहुंचने नहीं देते। सब यही निपटा लेते हैं।
मैंने पूछा- कैसे? तो उन्होंने उदाहरण बताया - पिछले
दिनों एक 40 साल के आदमी ने 16 साल की
लड़की से बलात्कार किया। वह गर्भवती हो गई। लड़की को मां-बाप थाना ले जाने वाले थे।
हमने उन्हें रोका पंचायत बैठाई और फैसला सुना दिया कि लड़की उस आदमी के साथ रहेगी
या फिर हम तुम्हें गांव से बहिष्कृत कर देंगे। फिर क्या था उन्हें बात माननी पड़ी।
थानेदार भी हमारे गांव की तारीफ करते हैं कि यहां से कोई केस बाहर नहीं जाता।
यानी जिस बलात्कारी को 7 साल की सजा कानून के अनुसार होनी थी, जातीय पंचायत ने उसे पुरस्कार स्वरूप
उस नाबालिक लड़की को ही सौंप दिया। दरअसल जिन गांव में प्रकरण थाने नहीं जाते इसका
मतलब यह भी हो सकता है की वहां कि जातिय पंचायते मजबूत है तथा कानून को पैरों तले
रौंदकर अपना न्यायालय चला रही है। डॉं अंबेडकर कहते है कि समाजिक बहिष्कार मौत से
भी बदतर सजा है। पीडि़त का पूरा परिवार तिल तिल कर मरता है।
हमारा
इतिहास रहा है कि हमने कई दकियानूसी प्रथाओं का रोकथाम करके, अपनी आने वाली पीढि़
के लिए एक खुशहाल वातावरण तैयार किया है। आशा है भविष्य में भी ऐसा ही होगा। छत्तीसगढ
में प्रस्तावित इस कानून का स्वागत किया जाना चाहिए। ताकि यह प्रदेश एक प्रगतिशील
एवं खुशहाल प्रदेश की श्रेणी में सबसे आगे हो।
Publish on navbharat 13/12/2017
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