शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022

22 Vows dispute and Agenda of RSS

 

आर एस एस का एजेंडा और 22 प्रतिज्ञाएं

संजीव खुदशाह 

पिछले दिनों 22 प्रतिज्ञा को लेकर पूरे देश में चर्चा छिड़ गई इसके पीछे आम आदमी पार्टी के मंत्री श्री राजेन्‍द्र पाल गौतम ने 22 प्रतिज्ञाएं को बौद्ध धर्म शिक्षा के कार्यक्रम में दोहराया और हिंदुत्व वादी लोगों ने इसे अपनी भावनाओं के आहत होने की बात कहकर इसे तूल दिया। इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने श्री राजेन्‍द्र पा
ल गौतम को मंत्री पद से हटा दिया।

यहां पर 22 प्रतिज्ञाएं विशेष महत्वपूर्ण नहीं है। क्योंकि यह हमेशा से पढ़ी जाती रही हैं। तमाम बुद्धिस्ट कार्यक्रमों में, बहुजन कार्यक्रमों में यह 22 प्रतिज्ञाओं का पढ़ा जाना एक आम बात है। लेकिन इस छोटे से कारण को लेकर किसी मंत्री को मंत्री पद से हटा देना बड़ी घटना है। इस पर हम चर्चा करें इससे पहले धर्मांतरण को ले कर बात करते हैं।

यहां यह बताना चाहता हूं कि कोई भी धर्मांतरण में प्रतिज्ञा, कसम, शपथ लेना एक आम बात है। जब कोई व्यक्ति हिंदू से मुसलमान बनता है, हिंदू से ईसाई बनता है, तो उसे उसके पुराने धर्म को ना मानने की शपथ दिलाई जाती है। 22 प्रतिज्ञाएं कोई नई नहीं है। वैसे भी 22 प्रतिज्ञाओं में से केवल शुरू की 3 प्रतिज्ञा ही हिन्दू देवी देवता पर आधारित है। कई जगह ईसाई बनाते समय मां-बाप की शपथ दिलाई जाती है। पुराने देवी देवताओं को ना मानने की शपथ दिलाई जाती है। इसी प्रकार मुसलमान धर्म में प्रवेश के दौरान भी शपथ दिलाई जाती है। ऐसी शपथ

, जाहिर है कि मुस्लिम से हिंदू बनने के दौरान भी पुराने इष्ट देव, अल्लाह या भगवान , उन्हें ना मानने की शपथ दिलाई जाती है। अब प्रश्न उठता है कि जब यह बहुत छोटी सी बात है। तो इस बात को इतना तूल क्यों दिया जा रहा है। यह समझना जरूरी है जब यह छोटी सी बात है तो इस बात पर एक मंत्री को पद से हटाया क्यों गया। इसे भी समझना जरूरी है।

दरअसल बहुत सारे लोग आर एस एस के सही एजेंडे को नहीं समझ पाते हैं। लोग समझते हैं कि भारतीय जनता पार्टी को सत्‍ता में बनाए रखना ही आर एस एस का मकसद है। लेकिन यह सच्चाई नहीं है। सच्चाई यह है की आर एस एस के लिए भारतीय जनता पार्टी एक मोहरा मात्र है। दरअसल आर एस एस का मकसद है हिंदुत्व के मुद्दे को मेंस्ट्रीम में लाना, राजनीति की धुरी में हिंदुत्व को रखना है और आर एस एस अपने इस मकसद में पूरी तरह से कामयाब दिखती है। ऐसी बात नहीं है कि इससे पहले हिंदुत्व के मुद्दे पर पार्टियां बात नहीं करती थी। लेकिन 2014 के बाद में परिस्थितियों पूरी बदल गई। अब कोई भी पार्टी के एजेंडे में कौमी एकता, भाईचारा, तर्क शीलता, विज्ञान वाद नहीं है इसीलिए कांग्रेस के राहुल गांधी अपने जनेऊ को दिखाते फिरते हैं। मंदिर मंदिर माथा टेकते हैं। इसीलिए समाजवाद की बात करने वाली समाज वादी पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन करती है। बहुजन की बात करने वाली बहुजन समाज पार्टी हाथी को गणेश बताती हैं। मायावती त्रिशूल लिए फिरती हैं। आम आदमी को लेकर चलने की बात करने वाली पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल अपने आप को हनुमान का भक्त बताते हैं। यानी जितनी बड़ी पार्टियां हैं वह सब हिंदुत्व की तरफ बड़ी तेजी से बढ़ती हुई देखी जा सकती है। अगर आप। JDU, AIMIM और AIDMK को छोड़ दें तो सभी बड़ी पार्टियां हिंदुत्व के एजेंडे पर चलती हुई दिखती हैं।

दरअसल आर एस एस का भी मकसद यही है की हिंदुत्व को राजनीति की धुरी बनाया जाए। इसलिए आर एस एस के खिलाफ बात करने वाले राहुल गांधी भी अपने आप को हिंदुत्व से अलग नहीं दिखाना चाहते हैं। मुसलमानों की बात करने वाली आप पार्टी, समाज वादी पार्टी अपने आप को हिंदुत्व के एजेंडे से जुड़े रखना चाहते हैं। बहुजन समाज पार्टी ने अपनी विचारधारा को लगभग पूरा बदल दिया है। इसके पीछे कोई दबाव नहीं है। लेकिन आर एस एस ने जो माहौल बनाया है। जो भ्रम लोगों में पैदा किया है कि हिंदुत्व के बिना राजनीति नहीं की जा सकती। वह भ्रम पैदा करने में पूरी तरह से सफल हो गई। भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर बाकी पार्टियों को लगता है कि वह भी हिंदुत्व को लेकर बात करेंगे तो लोग भाजपा को छोड़कर उन्‍हे वोट देगे। और वे सत्ता में आ जाएंगे। लेकिन यह उनका भ्रम है। सवर्ण हिन्‍दू किसी भी हाल में भारतीय जनता पार्टी का साथ नहीं छोड़ेंगे। बाकी जो 80% जनता है जो कि किसी ना किसी प्रकार से हिंदुत्व से पीड़ित है। उनके धर्म ग्रंथों से आहत है। वह हिंदुओं में शामिल हैं। वह जनता के लिए आज की तारीख में कोई ऑप्शन नहीं है। जो विज्ञान की बात करना चाहती है , जो जनता कौमी एकता को बढ़ाना चाहती है,  उस जनता के लिए आज कोई विकल्‍प नहीं है। क्योंकि कांग्रेस की सरकार भी जहां बन रही है वहां पर वे हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बीजेपी को पीछे छोड़ देना चाह रहे हैं। अब आप समझ सकते हैं कि आर एस एस अपने मकसद में किस कदर सफल हुआ है। और इतनी छोटी सी बात कांग्रेस की विचारक नहीं समझ पा रहे हैं। इसे आर एस एस की सफलता के रूप में भी देखा जाना चाहिए।

आर एस एस के कार्यकर्ता, विचारक अक्सर यह बोलते हुए देखे जाते हैं कि देखो हमने कांग्रेस को मजबूर किया राम गमन पथ बनाने के लिए। हमने उन्हें जनेऊ दिखाने के लिए मजबूर कर दिया। हमने आम आदमी पार्टी के केजरीवाल को कृष्‍ण बनने के लिए मजबूर कर दिया। याने संघ ने जो भ्रम तैयार किया है उसमें भ्रमित होने के लिए सभी पार्टी आमादा है। होड़ लगी हुई है हिन्‍दुत्‍व के ऐजेन्‍डे में आने की।

80% जनता का क्या होगा?

यदि सवर्ण और कट्टर हिंदुओं को छोड़ दें। तो 80% जनता जिसमें ईसाई, मुस्लिम, सिक्‍ख, कबीरपंथी, रवीदासी तमाम पंथों को मानने वाले लोग। जिनमें ओबीसी एससी एसटी हिंदू भी शामिल हैं। उनके लिए आज कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि भारत की जो 80% जनता है वह हिंदुओं के धर्म ग्रंथों से आहत है। और वह हिंदुत्व के एजेंडे पर नहीं विकास के एजेंडे पर गरीबी, भूखमरी, शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दे पर केन्‍द्रीत राजनीति को देखना चाहती है। समता, समानता, भाईचारा पर केंद्रित राजनीति देखना चाहती है। लेकिन कोई पार्टी इस पथ पर चलती हुई नहीं दिखती है। इसीलिए मौजूद नरम दल गरम दल में किसी एक को चुनना उनकी मजबूरी हो जाती है। तमाम गोदी मीडिया होने के बावजूद भारत की लगभग 80% जनता देश के राजनीतिक माहौल को समझ रही है। यह खुशी की बात है। आप इस विकसित होती भारत की जनता की राजनीतिक समझ को सलाम कर सकते हैं। यही कारण है की पिछले 2014 से हिंदुत्व का माहौल होने के बावजूद बहुत सारे राज्यों में गैर भाजपा सरकार बनी है।

 

जब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के द्वारा धर्मांतरण किया गया तब पहली बार 22 प्रतिज्ञाएं उपस्थित लाखो की जनसंख्या को दिलाई गई। इसके बाद जहां भी धर्मांतरण होता है तो सबसे पहले 22 प्रतिज्ञाएं की शपथ दिलाई जाती है। उसके बाद ही बुद्ध की शरण में लाया जाता है। प्रश्न उठता है कि उस समय तथाकथित हिंदुओं की भावनाएं क्यों आहत नहीं हुई। बहुत सारे दलित बुद्धिजीवी कहते हैं कि डॉक्टर अंबेडकर के साहित्य का निचोड़ 22 प्रतिज्ञाएं हैं। अगर आप उनकी तमाम किताबें नहीं पढ़ पा रहे हैं लेकिन यदि उनकी 22 प्रतिज्ञाएं पढ़ ले तो आपको समझ आ जाएगा कि उनकी किताबों में क्या है।  संघ अपने एजेंडे में डॉक्टर अंबेडकर को रखती है जहां एक ओर गांधी की आलोचना करते हैं वहीं दूसरी ओर डॉक्टर अंबेडकर की प्रशंसा करते हैं। और उन्हें अपनी ओर बनाए रखने की कोशिश करते हैं। फिर यही काम आम आदमी पार्टी भी करती है। आम आदमी पार्टी के तमाम कार्यालयों में और जहां उनकी सरकार है उनके ऑफिस में डॉक्टर अंबेडकर की फोटो लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बावजूद बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञा से उन्हें परेशानी हुई। प्रश्न उठता है की क्या बहुजनों को लुभाने के लिए ही डॉ आंबेडकर की तस्वीर लगाई जा रही है? उनकी विचारधारा का क्या होगा? उनकी तमाम लिखी किताबों का क्या होगा? जिसे भारत सरकार ने प्रिंट करके प्रकाशित किया है? आखिर वह क्या कारण है जो कि आम आदमी पार्टी अपने आपको बाबा साहब के करीबी बताते हुए उनकी प्रतिज्ञा को पढ़ने वाले मंत्री को वह हटा देती है। इसका सीधा कारण है 15% सवर्ण जनता को खुश करने की कोशिश। जबकि कोई भी राजनीतिक पार्टी 15% सवर्ण जनता के वोटों से सरकार नहीं बना सकती। यह उन्हें मालूम है। लेकिन वे उनके गोदी मीडिया से डरते हैं, उनके खिलाफ आईटी सेल से डरते हैं, उनको लगता है कि वह यदि हिंदुत्व के खिलाफ जाएंगे तो उनका विनाश निश्चित है।

तो क्या करना चाहिए?

हिंदुत्व के एजेंडे को अगर छोड़ दें तो राजनीति के लिए एजेंटों की कमी नहीं है। समता, समानता, भाईचारा, तर्क शीलता, विकास, स्वास्थ्य , गरीबी, बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दे हैं। जिन्हें राजनीति की धूरी बनाकर विपक्ष आगे बढ़ सकता है। और जनता के लिए एक विकल्प बन सकता है। ऐसा करने के लिए उन्हें हिंदुत्व के विरोध में कोई बात बोलने की जरूरत नहीं है। हिंदुत्व विरोधी बनने की कोई जरूरत नहीं है। ना ही अपने आप को हिंदुत्व में घुसा हुआ बताने की जरूरत है। लेकिन आज के दौर का दुखद पहलू यह है की इतनी छोटी सी समझ यदि एक दो दलों को छोड़ दें तो किसी को भी नहीं है। काश भारत की राजनीतिक एजेंडा पर किसी धर्म के कब्जे के बजाए कौमी एकता की बात होती। बात होती विज्ञान की। बात होती भाईचारे की। बात होती शिक्षा स्वास्थ्य और विकास की।

 

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