सोमवार, 17 जुलाई 2023

Pros and cons of uniform civil code समान नागरिक संहिता के नफे नुकसान

 

समान नागरिक संहिता के नफे नुकसान

संजीव खुदशाह

समान नागरिक संहिता, आजकल चारों ओर इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। चर्चा होने का कारण यह है की 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले केंद्र की सरकार (भाजपा सरकार) ने समान नागरिक संहिता लागू करने की बात रखी। प्रधान मंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने इस सं‍हिता को लेकर ब्‍यान दिया। आज हम यूनिफॉर्म सिविल कोड याने समान नागरिक संहिता के तमाम पहलुओं पर बात रखेंगे।

केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव का एक तरफ स्वागत हो रहा है तो दूसरी तरफ इसकी निंदा भी की जा रही है। कहा जा रहा है इससे अल्पसंख्यकों के अधिकार का हनन होगा, विविधता की संस्कृति समाप्त हो जाएगी। यह भी कहा जा रहा है की मुसलमानों को ठिकाने लगाने के लिए यह कानून लाया जा रहा है।

वैसे केंद्र सरकार की तरफ से समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस कारण केंद्र सरकार ठीक-ठीक क्या करना चाहती है, इस कानून को लाने के पीछे उनका क्या मकसद है? यह कहा नहीं जा सकता और जब तक कि मसौदा सामने ना आए तब तक इसके पक्ष या विपक्ष में कहना बहुत जल्दबाजी होगी। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे भा जा पा की मातृ संगठन आर एस एस ने बरसों से यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात को रखा है, एक देश एक कानून की बात वे हमेशा कहते आऐ है और देश के बहुत सारे लोगों को इस कानून के पक्ष में राजी भी किया है। उनका तर्क है की महिलाओं और वंचितों को अलग-अलग संस्कृति और कानून के नाम पर शोषण होता है। इस कानून के सहारे उन शोषण को दूर किया जा सकता है। इसीलिए वह इस प्रकार के कानून की वकालत करती है।

संविधान क्या कहता है?

आइए जानने की कोशिश करते हैं कि भारत का संविधान इस मामले में क्या कहता है? जब भारतीय संविधान का निर्माण किया जा रहा था, तब समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को महसूस किया गया था। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और उसी पर यह काम भी कर रहे थे। भारतीय संविधान की धारा 44 में समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारे में लिखा गया है। हिंदू कोड बिल को समान नागरिक संहिता का प्रथम सोपान कहा जा सकता है। जिसमें शादी, तलाक, बच्चा गोद लेना, उत्तराधिकार से जुड़े मामले को शामिल किया गया। जिसका उस समय कट्टर वादियों द्वारा विरोध किया गया था। जैसे कि आप सभी को मालूम है कि डॉक्टर अंबेडकर को कानून मंत्री रहते हुए इस हिंदू कोड बिल को पास ना करवाने के कारण मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि बाद में हिंदू कोड बिल पास हुआ और देश में लागू हुआ। हिंदू कोड बिल में खासतौर पर हिन्‍दुओं के अलावा जैन, सिख, बौद्ध को भी शामिल किया गया है।

संविधान सभा के द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का लक्ष्य और अभी के सरकार के द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के लक्ष्‍य में अंतर है। अभी की सरकार किसी खास वर्ग को खुश करने के  लिए यह संहिता को लाने की बात कह रही है। लेकिन संविधान सभा के निर्माण के दौरान संविधान सभा के सदस्यों ने एक ऐसे भारत की कल्पना की जहां पर धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, परंपरा के नाम पर, संप्रदाय के नाम पर, महिलाओं बच्‍चो और बुजुर्गो का शोषण ना हो।

समान नागरिक संहिता में सबसे ज्यादा लाभ महिलाओं को होने वाला है क्योंकि धर्म संप्रदाय जाति वयवस्‍था अक्सर महिलाओं के हितों का दमन करती है। आप इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार एक तलाकशुदा महिला को भरण पोषण का अधिकार नहीं है लेकिन हिंदू ला में यह अधिकार हिंदू महिलाओं को मिलता है।

इसी प्रकार कई आदिवासी समाजों में पिता की संपत्ति पर बेटियों को अधिकार नहीं मिलता क्योंकि यह उनकी परंपरा है, ऐसा उनका दावा है। कानून भी उसी मुताबिक बना हुआ है। जबकि यह अधिकार हिंदू कोड बिल में बेटियों को दिया गया है।

सामान नागरिक संहिता लागू होने पर देश की सारी महिलाओं, बच्‍चों, बुजुर्गो एवं वंचितों को एक जैसा अधिकार प्राप्त होगा। जैसा कि संविधान सभा के सदस्यों ने सपना देखा था।

यानी समान नागरिक संहिता एक सामाजिक मामलों से संबंधित कानून है, जो सभी पंथ के लिए विवाह, तलाक, भरण पोषण, विरासत व बच्चा गोद लेने में समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में कहें अलग-अलग संप्रदायों के लिए अलग-अलग सिविल कानून न होना समान नागरिक संहिता की मूल भावना है।

समान नागरिक संहिता की भारत में क्या है चुनौतियां?

भारत एक ऐसा देश है जहां पर छुआछूत भेदभाव ऊंच-नीच शोषण का बोलबाला है। जहां पर एक जाति दूसरे जाति के समान नहीं है। प्रश्न उठता है कि क्या जब एक जाति दूसरी जाति के समान नहीं है तो समान नागरिक संहिता लागू की जा सकती है। उच्च जातियों द्वारा छोटी जातियों के ऊपर शोषण करने का वीडियो अक्सर वायरल होता रहता है, ऐसी घटनाएं समाचारों में अक्सर आती रहती है। ये घटनाएं इस ओर इशारा करती है कि‍ भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने के पहले जातियों में समानता पर लाना होगा। कितनी ऐसी जातियां हैं जिनका प्रतिनिधित्व शासन-प्रशासन में आज भी नहीं है। और कई ऐसी जातियां हैं जो अपनी जनसंख्या के अनुपात से कई गुना ज्यादा प्रतिनिधित्व पर कब्जा बनाए बैठी हुई।

समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी करने वालों का यह तर्क है कि भविष्य में समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद आरक्षण को भी निशाना बनाया जा सकता है। बुजुर्वा वर्ग इस कोशिश में है की आरक्षण को निष्प्रभावी बना दिया जाए । ऐसा भी हो सकता है समान नागरिक संहिता को लागू करने में आरक्षण एक रोड़े की तरह देखा जाएगा।

इससे ऐसा वर्ग जो अपनी जनसंख्या से कई गुना ज्यादा अनुपात में शासन प्रशासन पर कब्जा बनाए बैठा है। आरक्षण समाप्त हो जाने के बाद उसका कब्जा स्थाई हो जाएगा। और एससी एसटी ओबीसी एवं अल्‍पसंख्‍यक वर्ग हमेशा के लिए शासन प्रशासन से महरूम हो जाएंगे।

यह भी कहा जा रहा है की इस कानून के लागू होने के बाद सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासियों का होगा उनकी जमीने छीन ली जा सकेगी। क्योंकि विशेष आदिवासी कानून किसी काम का नहीं रह जाएगा।

दलित आदिवासी जातियों में शादी और तलाक बेहद आम बात है। सामाजिक बैठकों में इन मामलों का निपटारा कर लिया जाता है। समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद हर बार कोर्ट जाना पड़ेगा। कोर्ट में भी प्रकरणों की संख्या बढ़ जाएगी।

चाहे जो भी हो हमारे पूर्वजों ने समान नागरिक संहिता का स्वप्न देखा है। जिसे उन्होंने संविधान में दर्ज भी किया है। इसीलिए समान नागरिक संहिता की जरूरत तो है। लेकिन यह देखा जाना होगा कि क्या देश इसके लिए तैयार है

? क्या इस कानून के लागू होने के पहले समानता आ चुकी है? धार्मिक समानता, जातिगत समानता, लैंगिक समानता आ चुकी है? समान नागरिक संहिता के लागू हो जाने के बाद या उसके पहले बहुत सारे ऐसे हितग्राही हैं जो कि धर्म के नाम पर परंपराओं के नाम पर संपत्ति और संस्थाओं पर कब्जा जमाए हुए हैं। उन्हें तकलीफ होगी और वह विरोध भी करेंगे जैसा कि हिंदू कोर्ट भी लागू होने के पहले हुआ था। ऐसा हो सकता है कि महिलाएं भी सामने आए और वह कहेंगे कि हमें अधिकार नहीं चाहिए, यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू मत करो। यह एकदम कॉमन सी बात है जब अमेरिका के गुलामों की बेड़ियां खोलने का आदेश जारी हुआ तो अमेरिका के गुलाम चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे और कहने लगे कि यह हमारी बेड़िया नहीं है यह हमारे गहने है। और उसे वह पहनने के लिए जिद करने लगे। बदलाव के समय ऐसा होता है इन सब का मुकाबला करते हुए समान नागरिक संहिता को लागू करना एक चुनौती होगी। देखना यह होगा कि किस प्रकार सरकार तमाम संस्थाओं, संगठनों  के बीच सहमति बनाते हुए यह कानून लागू कर पाएगी।

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