गुरुवार, 29 अगस्त 2024

Reservation within reservation right or wrong?

आरक्षण भीतर आरक्षण सही या गलत?

संजीव खुदशाह

१ अगस्त २०२४ को आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्‍यीय पीठ के द्वारा देविन्‍दर सिंह विरूध पंजाब के बारे में फैसला आने के बाद अगड़ा दलित और पिछड़ा दलित के बीच द्वंद छि‍ड़ गया है। दोनो ओर से अपने अपने तर्क दिये जा रहे है। आज यह बहस राष्‍ट्रीय पटल पर हो रही है। अगड़े दलित उनको माना जाता है जो आजादी के बाद से लगातार नौकरी पेशा में आ रहे हैं और इस जाति के काफी मात्रा में लोग आरक्षण का लाभ लेकर उच्च पदों तक पहुंचे हैं समृद्ध साली हुए हैं। जैसे जाटव, महार, अहिरवार, सतनामी आदि आदि। वहीं दूसरी ओर पिछड़े दलित उन्हें माना जाता है जिन्हें परिस्थितिवश या उनके अति पिछड़ापन होने के कारण आरक्षण का लाभ उस तरह से नहीं मिल पाया जिस तरह से अगड़े दलितों को मिला है। जैसे वाल्मीकि, लालबेगी, मेहतर, डोमार, बंसोर, चुहड़ा, घसिया, देवार आदि आदि। इनमें प्रतिनिधित्व का बटवारा बेहद असमान है। सफाई कामगारों में भी लाभ लेने में वाल्मीकि जाति सबसे आगे है।

यहां यह बताना जरूरी है कि याचिका कर्ता डॉक्टर ओपी शुक्ला जो की दलित समाज से आते हैं, उनका कहना है कि आजादी के बाद से सफाई कामगार समाज का शोषण हुआ है। उनका प्रतिनिधित्व कहां गया ? आखिर किसने उनका प्रतिनिधित्व खाया है? यह बता दें। वह कहते हैं कि मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका इसीलिए डाली ताकि संविधान के अनुसार जो सबसे अंतिम व्यक्ति है। उसे इसका फायदा मिल सके। बहुत सारी ऐसी जातियां आज भी हैं जिन्हें सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इस फैसले से दक्षिण भारत में खुशी का माहौल है तो उत्तर भारत में द्वंद छि‍ड़ा है।

अगड़े दलित कहते हैं कि यह फैसला विधि सम्‍मत नहीं है। यह फूट डालो राज करो जैसा है। इस फैसले से दलितों में दो फाड़ हो जायेगा, वैमनस्य बढ़ेगा। वे कहते है कि उन्होंने अपना गंदा पुश्तैनी पेशा बहुत पहले छोड़ दिया था। लेकिन पिछड़े दलित जाति के लोगों ने अपना गंदा पुश्तैनी पेशा नहीं छोड़ा। जबकि डॉ अंबेडकर ने १९३० में यह आह्वान किया था कि अछूत अपना गंदा पेशा छोड़ दें। पिछड़े दलित जातियों में बहुत बड़ी संख्या सफाई कामगार जातियों की हैं। यह सत्य है कि इन्होंने अपना पुश्‍तैनी गंदा पेशा नहीं छोड़ा। इसके कारण इनमें उत्थान नहीं हो पाया। यह थोड़ा बहुत जागरूक हुई तो भी इन्होंने उस गंदे पेशे में अधिक वेतन और सुविधा की मांग करने लगे। कई जगह ऐसा भी देखने मिला की वे इन पेशों में 100% आरक्षण की मांग करने लगे। ऐसे भी उदाहरण हैं जबकि इन पिछड़े दलित जातियों के कुछ लोगों ने अपने गंदे पेशे को छोड़कर अच्छे पेशे को अपनाया और वह आगे तरक्की कर गये।  

माननीय सु‍प्रीम कोर्ट की सराहनीय पहल

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति जनजाति में क्रीमीलेयर की बात की थी जिसे माननीय प्रधानमंत्री ने लागू नहीं होगा कहकर इस पर विराम लगा दिया, जो सही भी था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दूसरे निर्देश जिसमें यह कहा गया कि पीछे रह गई जातियों में अलग से आरक्षण का बंटवारा भी किया जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट का एक सराहनीय पहल है। आखिर अतिपिछड़े दलित और आदिवासी को अलग से आरक्षण मिलेगा तो इससे किसे आपत्ति होगी? 

यह प्रश्न खड़ा होता है कि आजादी के 75 साल बाद भी दलित आदिवासी इतने पिछड़े क्यों हैं? आखिर इनमें विकास और उत्थान क्यों नहीं हो रहा है आखिर क्या कमी रह गई। गंदे पेशे से छुटकारा देने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए था। क्योंकि एक मानव के द्वारा अपमानजनक पेशे का किया जाना पूरे भारतवर्ष के लिए शर्म की बात है और संविधान के भी विरुद्ध है। चाहिए था कि जल्द से जल्द इन पेशे में लगे लोगों को हटाया जाए और मानव की जगह मशीन का उपयोग किया जाए । साथ-साथ इनका पुनर्वास किया जाना चाहिए।

माननीय सुप्रीम कोर्ट से यह अपेक्षा थी कि अजा अजजा में जो आरक्षण दिया जाता है वह आरक्षण बहुत मात्रा में नॉट फाउंड सूटेबल  कहकर जनरल पोस्ट भर दिए जाते हैं। कई कई साल तक बैकलॉग की भर्तियां नहीं निकाली जाती है। निर्देश दिया जाना चाहिए था कि बैकलॉग की भर्तियां तुरंत करें और नॉट फाउंड सूटेबल को सामान्‍य में समायोजित न करके अगली भर्ती में उसकी वैकेंसी फिर से उसी केटेगरी में निकाली जाए।

जाहिर है पिछड़े दलितों आदिवासियों को मुख्‍य धारा में लाने के लिए हमें बहुत सारे कदम उठाने पड़ेगें सिर्फ आरक्षण से काम नहीं चलेगा तभी हमारे देश में कोई पीछे नहीं रह जायेगा। न ही किसी को अपने विकास के लिए गुहार लगाने की जरूरत पड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस पहल का स्‍वागत किया जाना चाहिए। 





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